आत्मविजय | Atmvijaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ই श्रान्तरिक युद्ध
में सुख प्राप्त नहीं होता । कया अच्छा हो कि इस बड़े युद्ध मे लड
ओर जीत कर उस परमानन्द को प्राप्त करे फ जिसकी हद
नहो।
जिस समय प्रजापति ने इन्द्र चौर विरोचन को आपस मेँ
लड़ते देखा और यह सममा कि यह बेचारे आये साल लाखों
जानों का खून कर देते हैँ और उन तुच्छ पदार्थों के लिए लड़
रहे दैः किं जिनका सुख कणिक ओर परिणामी है तो उन्होने उन
को इस लड़ाई से हटा कर दूसरे संग्राम के लिए तैयार किया
छर कहा कि “म्म, जो इस युद्ध मेँ जीत जायगा वह् कभी
किसी चीज़ की कमी का मुँह न देखेगा” | इस बात को सुनकर
इन्द्र और विरोचन ने अपना ज़ाहरी युद्ध छोड़कर आत्मिक युद्ध
प्रारम्भ किया और इस तरह उनमें से इन्द्र उस तत्व को समम
कर या अपने अहंकार को जीत कर उस धन को ले गये कि जिस
का कभी खात्मा ही न हो।
इस युद्ध के लिए हमको कोई चैलेख् नदीं देता, बल्कि यह
युद्ध स्वाभाविक छिड़ा हुआ है। लेकिन फके इतना है कि कोई तो
इसको समझता है ओर कोई नदीं । इसलिए अब हमको सिप
यही लिखना है कि यह युद्ध क्या है और इसमें मनुष्य विजयी
किस तरह वन सकता है। इधर तो बाहर का युद्ध छिड़ा हुआ है
ओर उधर अन्द्र का।
बडे मूजी को मारा नफ्से अम्मारा को गर मारा।
निहनज्जों अजृदहाओ शेरे-नर নাত নী লা নাত ||
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