कृष्ण-गीता | Krishna - Geeta

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Krishna - Geeta  by दरबारीलाल सत्यभक्त - Darbarilal Satyabhakt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तेरहवों अध्याय पर की आँखों में जगत तब क्यों डाले घूछ। जव ईश्वर है देखता दंड--अनुग्रह--मूल ॥३०॥ शद्धा खर पर रहे रहे परस्पर प्यार | दिग्ब न पड तत्र जगत म चोरी या व्यभिचार ॥३६॥ श्रद्दा इंधर पर नहीं और न उसका ज्ञान | হালি है प(पमय यह संसार महान .॥३५७॥ गीत २८ जगन तो भूछा है भगवान । हुआ दै छटनापय गुणगान ॥ - जगत अगर जगदीडा मानता । यदि अमोध फख्दान जानता | तो क्‍यों फिर विद्रोह ठानता । [ ६:०७ क्रा हाता इय धरणीतल पर प्रपा कां सन्‍मान | जगत तो মুক্তা है भगवान हुआ है छलनामय गुणगान ॥३८॥ यदि होता विश्वास हमारा - 1 ईश्वर-व्याप्त जगत है सारा | तो असत्य क्‍यों छगता प्यारा ॥ तरल झोकते क्‍यों पर की आँखों मे हम नादान जगत লী भरा है भगवान 1 1 हआ दै छडनामय युणगनि ॥२ ८,॥ -प दुनिया को क्या अन्ध बनाया । जब जगर्दाश्वर भूछ न पाया ।




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