कृष्ण-गीता | Krishna - Geeta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तेरहवों अध्याय
पर की आँखों में जगत तब क्यों डाले घूछ।
जव ईश्वर है देखता दंड--अनुग्रह--मूल ॥३०॥
शद्धा खर पर रहे रहे परस्पर प्यार |
दिग्ब न पड तत्र जगत म चोरी या व्यभिचार ॥३६॥
श्रद्दा इंधर पर नहीं और न उसका ज्ञान |
হালি है प(पमय यह संसार महान .॥३५७॥
गीत २८
जगन तो भूछा है भगवान ।
हुआ दै छटनापय गुणगान ॥
- जगत अगर जगदीडा मानता ।
यदि अमोध फख्दान जानता |
तो क्यों फिर विद्रोह ठानता ।
[ ६:०७
क्रा हाता इय धरणीतल पर प्रपा कां सन्मान |
जगत तो মুক্তা है भगवान
हुआ है छलनामय गुणगान ॥३८॥
यदि होता विश्वास हमारा - 1
ईश्वर-व्याप्त जगत है सारा |
तो असत्य क्यों छगता प्यारा ॥
तरल झोकते क्यों पर की आँखों मे हम नादान
जगत লী भरा है भगवान
1
1
हआ दै छडनामय युणगनि ॥२ ८,॥
-प दुनिया को क्या अन्ध बनाया ।
जब जगर्दाश्वर भूछ न पाया ।
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