सर प्रताप और उनकी देन | Sir Pratap Aur Unki Den

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Sir Pratap Aur Unki Den by विक्रमसिंह गून्दोज - Vikramsingh Guundoj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सरप्रधाप और उनकी देन {३ प्लेल्ता हता भारत के आजाद होने तर अपनी निरन्तरता को वनाये रसने में समर्थ हुआ | मुगलकाल में यहा राव माउेेव, হান चन्द्रनन, सयाई राजा घुरसिह, राजा गजरस। महाराजा जमवस्तमिह प्रथम, महाराजा अशीवर्सिह एवं अभयसिह आादि कुशछ व प्रवल परानमी न्या ने अपने सव साथिया वे सहयोग से बाह्य जाजान्ताआ के प्रभाव से इस ग्रदेश को सुरक्षित रपने का प्रशास उिया। दस वाठ म यहा ने वीरा वी वीरोचित घटनाएँ राजस्थान ही नहीं भारतीय इतिहास तक म महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। सचमुच मध्य- काल में यहा वे वीरो ने जिस इतिहास और सस्कृति का निर्माण क्या वह राजस्थान के किए ही नही समूचे देश वे लिए गौरप की वस्तु है । महाराजा अभयरभिह के पण्चात्‌ महाराजा रामसिह, वसतसिह विजयसिह, भीमरमिह और मानमिंह जोधपुर के नरेश बचे । महाराजा मानसिह के समय सर्वप्रथम अग्रेजा का मारबाड़ म प्रवेश हुआ और वे यहां की राजनीति म॑ भाग छेने ठगे। जब प्रसिद्ध इतिहामवेता बर्बछे टॉट पश्चिमी राजपूताने वा पोलीटिक्ल एजेंट नियुक्त हुआ तो उदयपुर, हाडीती, कोटा, वून्दी, सिरोही, जैसठ्मेर तथा जोधपुर भादि रियासतों का प्रजन्‍्ध भी उसके सुपुर्द क्रिया गया । ई० सन्‌ १८१६ के अन्तिम दिना मे उसने जोधपुर वा दौरा क्रिया । ता० ११ अक्टूबर को उदयपुर से प्रस्थान कर पकाणा, ताथद्वारा, केलवाडा, नाडोछ, पारी, क्ाकाणी, तथा ज्ञादामण्ड होता हुआ नवम्बर मासमे वह्‌ जोधपुर पहुँचा । ता० ४ नवम्बर को महाराजा मानर्सिह उससे मिठा । महाराजा ने उसका बडी घान शोकत के साथ स्वागत विया) + कातन्तरमे यहा (मारवाड) की राजनीति मे अग्रेजो वा दखऊ और भी वंढ जाता है। यहा वे झासका के राज्याविक़्ार और उत्तराधिरार जैसे मसलछा पर भी अग्नेजों द्वारा अत्यधिक हस्तक्षेप होने छगा । महाराजा मानभिह के पश्चात्‌ जोवएुर राज्य के उत्तराधिकारी के चयन के एक उदाहरण मात्र से यह स्पष्ट हो जायेगा कि इस अवसर पर नग्नेजों की भूमिका क्तिनी मत्त्वपूर्ण थी ! महाराजा मानसिह अपने झन्तिम दिना में राज-बार्य से विरक्त होकर विक्षप्त हैं। गये, उन्हान सल्यास (नाथ सम्प्रदाय) घारग कर लिया और जतवर नावजी वै दर्शनार्थ जाडोर जागरर बढ़ा गिरनार जाने का মলনুনা বলা ভিযা। जिस समय महाराजा पाल गाव में ठहरे हुए थे उस समर तत्शादीत पोलछिटिक् एजेंट उड़की पाव जाकर १ गौरीगकर हीशराचन्द ग्रोमा : जोधपुर राज्य वा इतिहास-भाग-९ * पृष्छ-८३० भावि महाराजा मानमिह के जीवन काठ में ही (ई० स० १८१८ दिनाक २६ माच म्न) महाराज कुमार छत्रसिह का देहान्त हो गया था । अ्रग्ने जो के सहयोग से प्रढमदनगर के शासक तसतसिह को गोद छिया 1




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