काकली | Kakali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
69
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मरौ दशा
मेरी दशा
जागता नहीं हूं तुम्हें देखता हूं 'चारों ओर,
साता नहीं हूँ तुम्हारा ध्यान घरता हूं में ।
बोलता नहीं हू किन्तु तुमको पुकारता हूं, े
होता हू न मान आप से विसरता हूं में ।
_ काशलेन्द्र' अब न अधिक भटकाओ हमें,
करता जो हूं तुम्हारे हेतु करता हूं में ।
जी नहीं रहा हूं यह जीवन विता रहा हूं,
सॉस चलती नदीं ह अहं भरता हूं में ।
( २ )
शांति हुई स्वप्न, कल्पना में भी न मोद रहा,
` सिचं मृद् आनन प दुख की लकीर है।
जीवन के क्षण से निकलते है अश्र-बंद,
दे हुई चीण, पये भी हुआ अधीर है ।
काशलेन्द्र तन होमया ह तख ह।न.वस,--
रह गया शप अमभिलाषा का समीर है |
डूबा ग्राख-कंज उर-ऋरुणा-सरोबर में,
मानस की पीर हुईं द्रौपदी का चीर हे ।
ष ^. न ५
৮ ২১ * ৯১
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