आचार्य राजशेखरकृत "काव्यमीमांसा" का आलोचनात्मक अध्ययन | Aachaarya Rajshekhar krit Kaavya Meemansha Ka Alochnatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
339
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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(4) उनके पुत्र देवपाल ^.0. 948.1
इस प्रकार विभिन्न शिलालेखों के आधार पर महेन्द्रपाल का समय 890 ई० से 910 ई० तक
स्थिर किया गया है ।
अन्तः साक्ष्य भी आचार्य राजशेखर को गुर्जरप्रतिहारवंशी महेन्द्रपाल का गुरू सिद्ध करते हे ।
आचार्य राजशेखर ने सबसे पहले 900 ई० के आस पास ' कर्पूरमञ्जरी ' सटुक कौ रचना कौ । इसका
प्रस्तावना में उन्होने स्वयं को महेन्द्रपाल अथवा निर्भयराज का गुरू बताया है 2 कर्पूरमञ्जरी का चण्ड
या चन्द्रपाल सम्भवतः महेनद्रपाल ही है । कर्पूरमञ्जरी के बाद आचार्य राजशेखर ने बालरामायण' कौ
रचना कौ ओर तत्पश्चात् ' बालभारत' कौ । इन नाटकं के नाम का बाल शब्द इनको कवि के
काव्यरचना काल की प्रारम्भिक रचना नहीं सिद्ध करता क्योकि बालरामायण' मेँ राजशेखर ने अपने
लिए ' कविवृषा शब्द का प्रयोग किया है 8 ' बालरामांयण' नामक नारक रघुकुलतिलक महेन्द्रपालदेव
कौ सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। इस नाटक में महेन्द्रपाल की सुस्थिर राज्यलक्ष्मी का वर्णन
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| 2111181)
2 “बालकई कइराओ णिव्मअराअस्स तह उवज्ञाओ '' (कर्पुरमञ्जरी 1--५)
3 निखिलं ऽस्मिन् कविवृपा'' (*बालरामायण ' प्रथम अङ्क -श्लोक 11)
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