श्रीरामकृष्ण परमहंस | Shriramakrishn Paramahans

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shriramakrishn Paramahans by स्वामी श्रीचिदात्मानन्द - Swami Sri Chidatmananda

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी श्रीचिदात्मानन्द - Swami Sri Chidatmananda

Add Infomation AboutSwami Sri Chidatmananda

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(२३) दोकर मयुष्योको सत्यमागं दिखाकर धमकी शापना करते है, जगते शान्तिका पुनरुत्थान हता रै, विषयवासना বাই कुरडमें पड़े हुए दुखी जीव स्वात्मानन्दकी पवित्र गंगामें विलास करने लगते हैं । सष्टिका कुछ ऐसा ही नियम है। धर्म- আগমন ज्वार-भाटे जाते ही रहते हैं और भ्रीभगवान्‌ भी जीवॉपर करणा फर समय-समयपर धर्मका पुनशद्धारकर शान्ति-खापन करते रहते है। भगवानूकी अचिन्त्य मायासि मोहित जीव विचारगून्य दो किंकतव्यविमूढ़ हों जाया करता है, उसका धर्माधर्मःविवेक नष्ट हो जाता ई, नाना शास्कि गोरलधन्धेमे फँसा हुआ मनुष्य उसीको ध्येय समभ बैठता है, घादा-विवाद- से ही सन्तुष्ट हो उसीको क्ञानोपरन्धि मान छेता ই परन्तु इस उपायसे वास्तविक ज्ञान और शान्तिकी प्राप्ति नहीं हो सकती, अनेक शास्रोके विचारसे प्रायः भ्रम उत्पन्न हो जाया करता है। सत्यकी खोज फेचल अन्थोंके बछसे कभी नहीं हो सकती, चह तो आत्मनिष्ठ अनुभव-पूर्ण गुरुद्वारा ही हुआ करती है, दूसरा कोई उपाय नहीं ই। भ्रीरामकृष्ण-जैसे महापुरुष जगदुगुरुरूपले संसारमें प्रकर होते हैं । इनके वाक्योंका प्रभाव किसी विशेष जाति वा देशमें ही सीमावद्ध नहीं रहता, वह तो समस्त जगतूर्में अपना प्रभाव डालता है। ऐसे ही महापुरुषोंसे धर्मकी स्थापना हुआ करती है। साधारण भलुष्य केबल बुद्धिबरल और वाक्पट्ुतासे धर्मका प्रचार करते हैं, परन्तु फल कुछ नहीं होता । यह वक्ता और श्रोता दोनोंके लिये केवल दो घड़ीका विलासमात्र होता है परन्तु आत्म-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now