हारूंगी नहीं | Harungi Nahi

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Harungi Nahi by श्री दिव्जेन्द्रनाथ मिश्र - Shri Divjendranath Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 माण ण त कामो जत त त मात त नति त ता ममम म त ण ति भे म त ना व वन श च ' साबुन क्‍ १५ ऊपर पानी बन्द हो गया था। ऊपर वाली सेडानी . यह बाल्टी लगाये खड़ी थीं । हँस कर बोलीं--' म्हाने भर लेने दो, जी !*' द्यामा पानी लेकर खौटी, तो सुखदेव खा चुका था। अचरज से बोली--- खा चके ? दो परावँंठों से ही पेट भर गया !” पर सुखदेव ने जल्दी-जल्दों पानी पिया और जलल्‍्दी-जल्दी कमीज पहन कर पैरों में चप्पल डाल कर खड़ा हो गया रसोईघर के सामने । হসালা जठी थाली लेकर बाहर निकली और उसे यों खड़ा देख तो रुक गयी । द सुखदेव ने हौले से कहा-- भाभी ! भाभी हौले से बोलीं--- क्यों, क्या हे ? “भाभी, आज बहुत अच्छी फिल्म आयी है ।' “तुम जा रहे हो ?' “पैसे नहीं हैं ! भाभों ने सोचकर कहा-- चौदह आने से काम चल जायेगा : चौदह आने हैं मेरे पास । “खा, काभ !?? द्यामा ने थालो वहै रत्र दी ओर दौडी जाकर वक्सेमेसे चौदह आने निकाल लायी और देवर की जेब में वे चौदह आने डाल कर होले से बोली---' वह उधर वाली साँकल खटखटाना । লী আমবী रहूँगी। सुखदेव ने हौले से कहा--“अच्छा । भाई साहब पूछेंगे, तो क्या कहोगी ? । श्यामा ने हौलेसे का~ कह दूँगी कि प्रोफेसर शर्मा के यहाँ गये हैं ! | सुखदेव ने प्रसन्न होकर कहा--'बस-बस, यही कह देता ।” और दरवाजे की ओर दबे पाँव बढ़ा और चौखट के पार हो गया। फिर किवाड़ों पर मेँह रखकर हौले से पुकारा-- भाभी !” পু तयर ता न आर




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