साहित्यरत्न प्रश्न -पत्र उत्तर सहित भाग 1 | Sahitya Ratan Patra Uttar Sahit Part -1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
896
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
रहता है, में और स्त्री की ब्याइुलगा, जिसमे अ्रसमर्थवा और निरीहता रहती
है, में पर्याप्त अन्तर है। स्त्री को भ्रात्मसमपंण से मितना श्राव्मदोप होता
है उतना पुरुष को नहीं, प्रत्युत पुरुष को कई एक प्रव॒स्थाश्रों में आ्रात्मसमपयण
अखरता ही है। शत एवं भारतीय मत में प्रम याविरद्द की श्रास्यन्तिक
अभिव्यक्तित जितनी स्त्री में सानी हैँ उतनी पुरुष में नहीं ।
इस प्रकार, कप्रीर और जायसी के ईश्वरोन्म्ुख प्रोम में तत्वतः
कोई अन्तर न होते हुए भी, उनके तक ज्ञान, भ्जुभूति कौर इश्टकोण के
औेद से दोनों के प्र म में पर्याप्त प्रन्तर है ।
प्रक्ष ३--संभव है, तुलसीदास का स्पान्तर में प्रह्ट त्थाद प्रति-
पाद्दवित मद्दावाक्यों में विश्वास रहा हो, पर धिद्धान्द रूप से तो उन्होंने विशिष्टा-
ज्व॑ं तवाद को ही स्त्रीकार किया है ।”
इस मत से आप कहां तक सहमत हैं? विनयपत्रिका के पदों के
डद्धरणों से अपने मत की पुष्टि कीमिये।
उत्तर---तुलसी के दाशंनिक धिद्धान्त के विपय में वियोगी हरि जी
के इस सत से सहमत होना द्वी पढ़ता है । कारण, चादे सुलसी के दोक्षा-
सम्प्रदाय की दृष्टि से श्लौर चादे उनकी रचनाश्रों में प्रतिपादित उनके सिद्धान्तो
की दृष्टि से, देख लिया जाय, घुलसी शुद्ध रूप में विशिष्टाह् तवादी सगुण
राम के श्रनन्य भक्त दही सिद्ध होते हैं, इसके अ्रतिरिक्त और कुछ नहीं ।
तुलसी जिस सम्प्रदाय में दीक्षित थे, वह रामानन्दी वैष्णवों का श्री
सम्प्रदाय था। वह रामाजुज के विशिष्टाद्न ठवाद को मानने वाला था। विशिष्टा-
दूर्वेत-बाद में चिदृचिद् विशिष्ट त्रम्द फी सत्ता स्वीकार की जाती है शर्थाव् ये
लोग धम्द माया श्रौर जीव की प्रथक् सत्ता स्वीकार करते हैं। माथय और
चम्द्द दोनों सत्य हैं, अनादि हैं। जीव माया यद्ध है, ईशर माया से स्वतन्त्र
है, भत्युत माया ईशर के वशगत है। तभी ये लोग सतोग्रुणी माया से युक्ड
भगवान् के अवतारी रूप को श्रत्यक्ष बत् द्वी मान कर उसकी उपासना करते
हैं। तुलसी भी इसी मत के अज्जुयायरी थे और सदैयव भगवान् से सीता के साथ
हृदय में निवास करने को कहते दै । वे संसार को ““छियाराममय” देखते ये,
फोरा 'राममय' नहीं । वे भक्त फो सर्वोच्च स्थानदेते थे श्रौर सदैव राम से
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