राष्ट्र निर्माता | Rashtra Nirmata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' महात्मा गाँधी--भारत की आत्मा १९ चलते हैं| पिलक और गांधी में राजनीतिक विचार धाया के सम्बन्ध में कुछ मतभेद हो गया था--यद्यपरि दोनों दी एक दूसरे को समुचित सम्मान की दृष्टि से देखते थे। तिलक महाराज का विचार था कि देश का हित स्वोपरि है | देश की स्वतन्त्रता रुत्य से भी ऊपर है। स्वजन्ज्ञता संग्राम में सत्य की हत्या करके अगर विजय मिलती दो, तो सत्य की हत्या करने में कोई पाप नहीं | परन्तु गांधी जी के विचार भिन्न थे | उनके विचार से सत्य उर्वोपरि था। अगर सत्य की हव्या करके स्वतन्त्रता मिलती है तो ऐसी स्वतन्त्रता गांधी जी के लिये व्यर्थ था | वे इसी सिद्धान्त पर आज तक अडिग बने रहे | उनके विचार से' व्यक्ति से बड़ा देश है और देश से बड़ा सत्य है, जिसका हम सबको श्रनुमव करना है। सत्य के विना स्वतन्त्रता रह ही नहीं सकती | सत्य की ठुकराना परमात्मा के अस्तित्व को न मानना है। सत्य के सम्बन्ध में उनके ये विचार कोई बाद में नहीं आये थे | वे प्रारम्भ से सत्य के अनन्य उपासक थे | बहुत दिन पहिले से बह इन विचारों का प्रचार , करने लग गये थे | “मेरी गीता मुझसे कहती है कि शुभ कार्य का फल कभी अशुभ नहीं हो सकता” (यंग इरिडिया सन्‌ १६२५) (प्रत्येक देश की घार्मिक पुस्तकों में सत्य का प्रतिपादन किया गया है सन्‌ १६९२४, यगइरिडिया' भ्म जानता हू परमात्मा सव्यहै भारतवर्ष की स्वतन्त्रता सत्य पर समा-धारित होने के कारण कभी भी संसार के लिये कष्टप्रद नहीं हो सकती” ( यगइरिडिया सन्‌ १६२४ ) | इसी तरह एक वार्‌ यरवदा जेल में! कहा था कि #सत्य अनन्त दहे--क्योंकि वह परमात्मा का प्रतिरूप हैं। यही कारण हैः सत्य के द्वारा मिलने वाला. आनन्द भी अक्षय ही होता है। सत्य में मेरा. ` विश्वास दिनादिनटर होता जा रहा है 1” इत्यादि .।




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