राष्ट्र पिता | Rashtra Pita

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Rashtra Pita by श्री रामप्रताप त्रिपाठी - Shree Rampratap Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्याग्रह-आंदोलन प रौलट घिल के विरोध से देवा का कोसा-कोना गूंज उठा । इस व्यापक क्रंदन में उसने भी अपनी आवाज सिला दी। किन्तु उसकी आवाज औरों की आवाज से कुछ जुदा थी । वह एक दांत और घीमी आवाज थी, लेकिन जन समुदाय की चीख से ऊपर सुनाई देती थी । वह आचाज कोमल और मधुर थी, किस्तु उसमें कहीं-न-कहीं फौलादी रवर छिपा दिखाई देता था । उस आवाज में शील था और यह हृदय को छू जाती थी, फिर भी उसमें कोई ऐसा तत्त्व था जो कठोर और भय उत्पन्न करने वाला था । उस आवाज का एक-एक दब्द अर्थपुर्ण था और उससें एक तीन आत्मीयता का असुभव होता था । शांति और मित्रता की उस भाषा में दार्वित व कम की कांपती हुई छाया थी भर था अन्याय के सामने सिर न भुकाने का संकत्प । अब हम उस आवाज से परिचित हा चुके हूं, पिछले १४ वर्षों में हम उसे काफी सुन चुके हैं । कितु सन्‌ १९१९'की फरवरी और सार्च के महीनों में वह हमारे लिए एक बिलकुल नई आवाज थी । उस ससय हमारी समक में नहीं आता था कि हम उसका वया करें, फिर भी हम उसे सुन-सुन कर रोमांचित हो,उठते थे । वह हमारी उस राज- नीति से विलकुल भिन्न थी जिसमें शोरगुल वहुत होता था और निंदा करने के सिवा और कुछ नहीं किया जाता था। वह उन लंबे-लंबे भाषणों से भी बिलकुल अलग थी, जिनके अन्त में विरोध के वे निरर्थक और निष्फल प्ररताव पास होते थे, जिन्हें कोई अधिक सहत्त्व सहीं देता था । गांधी की राजनीति कमें की राजनीति थी, बात की नहीं । सत्याग्रह-आंदोलन महात्मा गांधी ने ऐसे लोगों की एक संत्याग्रह-सभा बनाई जो कुछ चुने हुए कानूनों को भंग कर अपने आपको गिरफ्तार कराने को तैयार थे । उस समय यह एक बिलकुल नरयाँं विचार था और हम में से बहुत से लोग उससे उसेजित




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