योगप्रदीप | Yogapradip

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Yogapradip by लक्ष्मण नारायण गर्दे - Lakshman Narayan Gardeश्री अरविन्द - Shri Arvind

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लक्ष्मण नारायण गर्दे - Lakshman Narayan Garde

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श्री अरविन्द - Shri Arvind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा लक्ष्य भिमानिनी या देहाभिमानिनी सत्ता दी ईश्वर नहीं है, यद्यपि वह्‌ आती परमात्मासे ही टैः वैसे ही प्रकृतिकी यह यान्त्रितता ही साता--ईश्वरी--नहीं है ) अवश्य ही इस यान्निकतामे तथा इसके पीछे माताका अश है जो विकास- क्रम साघनेके लिये यह सामग्री बनाये हुए, है । पर লালা स्वय जो कुछ हैं वे कोई अविद्याकी शक्ति नहीं ट) प्रत्युत भगवानकी चिच्छक्ति, भागवत व्योति; परा प्रकृति ट जिनत्ते हम मुक्ति ओर भागवत सिद्धिकी कामना करते द्‌ | पुरुषृ-चेतन्यका अनुभव-- मान्त, खच्छन्द, त्रिगुण कर्मोका अनासक्त अलिति साक्षित्व--मुक्तिका साधन ই सिरता, अनासक्ति, गान्तिसय शक्ति ओर आत्मरतिको प्राणोमे, देहमे ओर मन-बुद्धिमे ठे आना होगा । यदि इस आरमरतिकी इस प्रकार मन-बुद्धि, प्राण और देहमे प्रतिष्ठा दो गयी तो प्राणगत यक्तियौके उपद्रवौका हिकार होनेका अवसर नहीं आ सकता । पर यदह शान्ति, समत्व, सिर शक्तिः ओंर आनन्दका संस्थापन; माताकी शक्तिका; आधारमे, केवल प्रथम अवतरण है | इसके परे एक ऐसा शान है, एक ऐसी सद्चालिका शक्ति है, एक ऐसा गति- शील आनन्द है जिसका अनुभव सामान्य प्रकृतिकी उत्तमावस्थामें, अत्यन्त सात्त्विक अवस्थार्मे मी; नहीं हो सकता, क्योंकि यह भागवत गुण टै । ९ |




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