धूप करे हस्ताक्षर | Dhoop Kare Hastachar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चौराहे के बल्ब जल उठे
फिर सूरज उग आया
लडता है अब तट सागर का
पावस की रात में
दुबक रही है खेड खेत की
कैसे गीत जियेगा मेरा
श्रेय किसी का काम किसी का
मेघ मत करो गीला ऑगन
मैं हूँ एक सुलगता टापू
प्रिय फागुनी शिकायत जैसी
धूप करे हस्ताक्षर
काया दर्प उगलती है
कोई रोक न पायेगा
कविता के दरवाजे पर ताले है
शरद आ गई है
व्गरवों से जुड गये
इस तरह जियो
आओ तुम आओ
यह उल्टा पल्ला है
रश रही दे गाय दुअपरे
त दै सादा ष
फागुन के देन
प्यार कहा & ज किसी ने
हे अट रहा यह ताड
गोबर पथनी यह बात तुम्हारी
है शब्द रेशते बौस शिष्टाकाशे के
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मेरे लोहर बढ़ैया
जगती जद में
अतीत की यादों के गटठर
तन्द्रिल बैठी गौरैया
मत भागो उस महानगर को
कविता अब कौन सुने
तू असीम है मनुष्य असीम है
भारत के पति हो
देखा तुमको
जग में फिर फिर धोखा खाया
मैं पादप सा তরু
मैंने दिन भर ध्यान लगाया
सब चौराहे एक तरह के
अगर थके हो चलते चलते
एक पेड नीम का
सोचता है आज
हे अतन्दिल चिर सजग कवि
नौका खोलो प्रिय
स्वागते के मधुर गान
तू ही दीप जलाने वाला
चतकबरी धुप भी
ओ बसन्त
हे बसन्त तुम आओ
आनन्द ओर है
मन मेरा
कर दो स्वदेश की माटी का
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