दक्षिण - पूर्वी और दक्षिण एशिया में भारतीय संस्कृति | Dakshan - Purvi Aur Dakshin Eshiya Men Bharatiy Sanskriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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No Information available about सत्यकेतु विद्यालंकार - SatyaKetu Vidyalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-प्रवेश १४
लिखा है--“जाबज के द्वीपों को सुवर्णभुमि इस कारण कहा जाता है, क्योकि बहा की
मिट्टी को बदि थोड़ा-सा भी धोया जाए, तो उससे सोना प्राप्त हो जाता है।” बृहत्संहिता
में उत्तर-पु्व॑ के देशों की जो यूची दी गई है, अल-बरूनी के अनुसार उसमें सुवर्णभूमि भी
थी । हरकी, याकूत, शीराजी, और बुजुर्ग-बिनू-सहरियार नामक अरब लेखकों ने भी
सोने की भूमि का उल्लेख किया है ! इन लेखकों का समय बारहवों से चोदह॒वीं सदी तक
था। नूवायरी (चौदहवीं सदी) ने सुमात्ना के पश्चिमी भाग में स्थित फनसूर का 'सोने
की भूमि' के रूप में वर्णन किया है (मजूमदार--सुवर्णद्वीप, पृष्ठ ४०-४१) ।
भारत के अनुकरण में चीनी लोग भी इस क्षेत्र के प्रदेशों को सुवर्णद्षीप ही कहा करते
थे । यि-त्सिग ने अपने यात्रा विवरण में दो बार किन्-च्यू (सुवर्णद्वीप) का उल्लेख किया
है, जिसे उसने चे-लि-फो-चे (श्रीविजय) से मिलाया है। यि-त्सिग ने श्रीविजय को ही
सुवर्णद्वीप कहा है ।
दक्षिण-पूर्वी एशिया के किस प्रदेश को सुवर्णभूमि कहा जाता था, और किस प्रायद्वीप,
द्वीप या द्वीपसमूह के लिए सुवर्ण भूमि शब्द प्रयुक्त होता था, यह निर्धारित कर सकना
कठिन है। विद्वानों में इस प्रश्न पर मतभेद भी है। पर भारत के पुर्व में जिन देशों और
द्वीपों को टालमी ने त्ान्स-गंगेतिका (गंगा पार का भारत) कहा था, सुवर्णभूमि और
सुवर्णद्वीप भी उन्हीं को कहा जाता था। इस बात के प्रमाण विद्यमान है, किं बरमा,
मलय प्रायद्रीप ओर सुमात्रा के लिए सुवणेभूमि शब्द का प्रयोग हुम है, गौर सुमात्रा तथा
उसके समीप के द्वीपों को सुवर्णद्वीप भी कहा गया है। पर इन संज्ञाओं का प्रयोग केवल
इन्हीं तक सीभित नहीं था। भारत के दक्षिण-पूवं के प्रायः सभी प्रदेश भौर दवीप सुवर्णभूमि
के अन्तगंत ये ।
(३) दक्षिण-पूवो एशिया के विविघ प्रदेशो का
भारतीय साहित्य में उल्लेख
सुवर्णभूम और सुवर्णद्वीप शब्दों का प्रयोग जिस ढंग से प्राचीन साहित्य में हुआ है,
उससे यह स्पष्ट नहीं होता, कि ये किन प्रदेशों और द्वीप के नाम थे। पर भारत के प्राचीन
ग्रन्थों में दक्षिण-पूर्वी एशिया के अनेक ऐसे प्रदेशों और द्वीपों के नाम विद्यमान हैं, जिनकी
भौगोलिक स्थिति को अधिक स्पष्टता के साथ प्रतिपादित किया जा सकता है। पौराणिक
साहित्य में भारतवर्ष के नौ भाग कहे गए हैं---
भारतस्यास्य वर्षत्व नव भेदान् बियोध से ।
समुद्रान्तरिता क्षेयास्ते त्वगस्था: परस्परम॥
इन्द्र द्वीप: कशेरुमान् ताज्नपर्णी गरभस्तिमान्।
नागहीपस्तथा सौम्यो गान्धर्वो वारुणस्तथा ॥
अयं तु नवमस्तेषां द्वीपः सागरसंबतः।
योजनानां सहस्र बे दीपोऽयं दक्षिणो शतम् ॥।
भारतवर्ष के नो भेद या विभाग हैं, जिनके बीच में समुद्र पड़ता है, और जिनसे
एक-दूसरे में आ-जा सकना कठिन है। ये भाग इन्द्रद्वीप, कशेरूमान्, ताजनपर्णी, गभस्ति-
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