शरत साहित्य -शरत पत्रावली | Sharat Sahitya- Sharat Patrawali

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Sharat Sahitya- Sharat Patrawali by डॉ. महादेव साहा - Dr. Mahadev Saha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दारत-पत्रावडी प मेण कख्कन्ता याना--य देशाको छोड़कर धामद समव नहीं दोगा। समप्त रहा हूं स्वास्थ्य मी ठीक नहीं रदेगा, छेफिन ठीक न रहना ही अच्छा है, पर वह्दों घाना ठीक नहीं । ऐसा ही लग रहा है। मेरी फाउप्टेनपेन चुम्दारे हाथोंमें अछय हो | उस फलमने बहुत-सी घीर्जे लिसौ हं। काम लेते पर और मी छिखेगी| माण यहीं तक । अगर ' चन््रनाय ` मेखना समव हो मोर सुरेन्द्र राजी दा, तो णहीं तक दोगा संशोषन फरफे फ्णीकों भेशैंगा। चिट्टीका जबाब देना। হাল १४ छोभर पोजारउंग डाउन स्ट्रीट रंगून, २६-४-१९१ २ भीचरणेषु। छुर्दारी चिट्ठी पाकर जितना अचरन हुमा उससे सौगुना व्ययित हुआ। मुझसे डाए करोगे, इस यासफरो अगर मैं स्पय कहूँ तो क्‍या छुम विश्वास फरोगे | कछकतेकी स्मृत्ति आज मी मेरे मनमें खौती चागती ऐ। में यहुत-सी यातें भूखता हूँ सद्दी। छेफिन इन यातवोंकों इतने गत्वी फदापि नदी । शायद फरभी नहीं भूछता | सो मृछ हो शसकी पिम्मे डर मैं नही झुँगा। में अच्छी दरइ नानता हूं कि यदि निराछेसे मुप्त एफ बार मेरे मुँह और मेरी वादोंश्रे याद कर देस्यो, दो समझ सकोगे कि तुम मुझसे डाइ करोगे, यद्ट पात भेरे मुहसे नहीं निक्‍्छ सकती | मे तो उपीन, इस यावी कर्मना ही नदी फर सक्षता। फिर मी फद्दता हूँ कि तग्दारी जो इच्छा हे मेरे संद्ेधमें सोच समझ सकते दो। में तुम्हें अपना उतना ही भमस््रफोी युट्‌ सआप्मीय सौर रिष्ठेमं मान्य চথক্ষি অমগুয়া, और यही मश किया है। दुद्वारा आपसर्म झगढ़ा फिसाद छ्लो सच्त्ता है, इसछिये क्या # उसके बीच पहँगा ! तुमने विश्वास किया है कि मैंने कहा द कि मुम सुप्से षाए करते दो | गेरे संरंधर्म तुमने ऐसी ग्रातपर फैसे प्रिष्रास किया सौर उसे सुप्ते लिखनेका साएम्न किया! युरा ऐोनेके कारण क्या मैं इतना अपम हूँ। मैं मनसे श्ञानसे इस तरएकी यातकी दकृस्पना फर सकता টু) ঘছ सास १




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