गांधीजी के जीवन प्रभात | Gandhiji Ka Jeevan Parbhata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चोरी और प्रायश्चित्त १६
कटवाकर कजं चुका दिया गया, पर मेरे लिए यह
घटना श्रसह्य होगरई । इसके बाद मेंने चोरी न करने
का निरचय किया। मन में आ्राया कि पिताजी के सामने
जाकर चोरी कबूल कर लूं। अंत में मेंने चिट्ठी लिख-
कर कांपते हाथ से पिताजी को दी । वह वीमार थे ।
चिट्ठी देकर में उनकी चौकी के सामने बैठ गया । उन्होंने
चिट्ठी पढ़ी । आंखों से मोती की वूंदें टपकने लगीं।
चिट्ठी भीग गई । थोड़ी देर के लिए उन्होंने आंखें मूंद
लीं, चिट्ठी फाड़ डाली | चिट्ठी पढ़ने को उठ वेठे थे,
सो फिर लेट गये। में भी रोया । पिताजी को कितना
दुःख हुआ है, यह् समभ सका । इन मोती की वूंदों के
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चोरी का सच्चा प्रयश्चित्त
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