दस रंग नाटक | Das Rang Natak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समय
स्यान
गोशाल
शुमा
गोशाल
शुभा
गोशाल
एक और सिद्धार्थ
सध्यातात
बुद्धकालीन सर्वहारा दार्शनिक मसलि गोशाल की एक पहाड़ा पर बनौ पर्ण-
कुटि)
(पार्श्व से समवेत त्वर)
सुद्ध शरण गच्छामि।
धम्म शरण गच्छामि।
सध शरण गच्छामि।
(समवेत स्वरो को सुपर इस्पोज करते भार-काट ओर शोर-शरावे के भयावह
स्वर जो कुछ क्षण जारी रहकर पहले समवेत स्वरो मे घुल-मिल जाते हैं।
दार्शीनिक गोशाल के सवादो के दौरान ये ध्वनिया धूमित्र हो जाती हैं।)
(दार्शनिक गोशाल री पर्ण कुटी आलोकित)
रारि क प्रयम पहर की ओर अग्रसर थकी सध्या। बुद्ध की प्रिय नगरी, वैशाली।
नगर के कोलाहल से दूर पहाड़ी पर बनौ मेरी यह पर्ण-कुरि। अ धकार का यह
एकान्त। बुद्धकाल के चितन का साक्षी, मै! दार्शनिक गोशाल। (मार-काट
चीत्कार की ध्वनिया पार्श्व से उभरती हैं) चारों ओर क्रोध, बैर बढ़ती ऋरता।
भाषण हिसा और प्रतिहिंसा। सारा उत्तर भारत जल रहा है। वासना, द्वेष,
ईर्ष्या के विपैले अजगर जीभ लपलपाये स्वच्छद विचर रहे हैं। अतृप्त कामनाओं
और लालसाओं के खड्ग मौसम की फसल के रूप में उग आये हैं। (बुद्ध शरण
गच्छामि वे स्वर उभरते हैं) गौतम बुद्ध का प्रवचन। भिक्षुओं सृष्टि जल रही
है। आसे जल रहा ह । चायो भोर यह किस की अग है ? प्रश्न अनुत्तरित नहीं।
यह काम की आग है । यह कैसौ विडम्बना है ? इतिहास के इस काल बिन्दु पर
गौतम बुद्ध मौन हैं। ध्यानमग्न। शब्ठों की कारा से मुक्ति पाने का मौन ही एक
उपाय है
(नोहार कन्या शुभा का अबेश)
आचार्य, गोशाल।
शुभा तुम? गौतम बुद्ध की प्रिय शिष्या।
आचार्य।
विहार से चलकर अकेली यहा तक आई हो ?
एक नौर सिद्धार्थं 17
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