भेड और मनुष्य | Bhed Aur Manushya

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Bhed Aur Manushya by यमुनादत्त वैष्णव 'अशोक'-Yamunadatt Vaishnav 'Ashok'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म्‌ की दिल घक से रह गया । उसमे सोचा कि आज इससे भ्रवर्य उसके भत्नों को अपने बाप को बता दिया है। इस विच्ारमात्र से उसके ललाट पर पसीना छूट गया। वह उद्विस्न हो गया। उसने भठ से नीचे भांगन में जाकर देखा--उसका भाप बहियों में उन्तका हुआ था । वह चुपचाप आकर बेठ गया । उसने सोचा कि अगर वह उसके पिता को कह भी देगी तो उसका क्या भ्रहित होगा ? वह भ्रपने पिता को साफ-साफ़ कह वेगा करि वहु उससे विवाह करेगा ही, उसके बिना नहीं रह सकता, श्रगर उसकी श्षादी नही हुई तो वह सचमुच झात्म-हया कर लेगा। उसके जेहरे पर फिल्‍मी प्रेमी की तरह कृत्रिम हृढ़ता भाई झौर यह प्रकडकर गुलाब को देखने लगा । वह प्रत्यन्त भावावेश भौर उत्तेजना मे था । तभी एक कागज गोलाकार मे श्राकर उसके बरामवे मे पडा । उष मै क्षपक कर उसे इडाया । मत की वाचे दिक यदं । परीरमे जाना गई । उससे पढा--- कमलली, मैं प्रापका भाम जानती हूँ । कैसे जानती हूँ, यह नही বা वाऊँगी !* * मैं श्रापकी धमकी से डर गई हूँ । सुभे लगा कि क्षाप रच- शवं भ्रात्म-दृत्या कर लेंगे श्रोर भापकी लाक्ष मेरी खिड़की के शीषे पडी मिलेंगी, इस दुष्कत्पता भात्र से मेरा खून ब्रफ की तरह जमने लगा म्नौर मैंने आपके पन्नों का उत्तर वैसा निरश्रय किया । भेरा यह पत्र आपकी मेरे बारे में सही जानकारी देगा मौर मैं सम- भरती हूँ कि भाप उसके बाद भ्रपता इरावा बदल ल़ेंगे।'''मैं बहुत भभागी हैं, इसलिए मेरे बाप ने नेरा मात (िता' रखा है। बचपन्र में से श्रपनी भाँ को जा गई ऐसा सभी कहते है। मेरी बातूनी मौसी का कहता है कि शेरे करणा जहर भी प३दे ६, षह श्रनि अवश होता ६, कही धापका मह “परिजात” सुध की जगह भगार की जलत त' पला वरे यह विकनारएतिय एवन दै । प्रस्तु 1 मे आपको छुछ बाते, बताना खाहती हैं। पहली बात भंह कि हसारे




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