भेड़ और मनुष्य | Bhed Aur Manushya

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Bhed Aur Manushya by यमुनादत्त वैष्णव 'अशोक'-Yamunadatt Vaishnav 'Ashok'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पति-पत्नी ७ जाता हूँ | इन्हीं क॑ लिए कमाकर्‌ लाता हूँ। घर का काम छुम्हारा हे। बच्चों की देख-रेख तो औरतों का ही धमं है।यह হী काय्य पुरुषों से कैसे हो सकता है ¢ | बातें वहीं पर समाप्त हो जातीं। जया और जगन्नाथ दोनों शिक्षित थे । दोनों ही एर ए पासे | एफ० ए० फ्‌ बाद जगन्नाथ ते सौ ही पाञ्च किया था और जया भी शादी से पूं छः मत्ते तक सहिला विद्यालय में बी ए० पढ़ने गई थी | | उर का काम निश्चय ही औरत का हे, यह बात जया स्वय स्वीकार करती थी | वह सोचती, सचभुच आदिकाल से यही मानब-सभाज में होता आया है| डुह्ता, बधू, भायों, गहिरी, माता आदि भाचीनतम नाम स्त्री-जाति के उनके घरेलू- च এন ৭ সাং ही पड़ गए हैं। तब इस तक का उत्तर ही क्‍या बह सोचती कि सुबह जल्दी-जल्दी खाकर वे स्कूल को दो मील साइकिल पर जाते हैं, और दिन भर के परिश्रम फे उपरान्त फिर दो मील की यात्रा करके, शाम को थके-माँदे लौदते हैं: । इस पर भी उस बार बिना जया को बतज्ञाए, उन्होंने एक < धरान किया था, ओर चार महीने में सो रुपया लाकर उसको दिये थे। फिर वे दो जोड़े बढ़िया साड़ियों और ब्लाउज के उत्त रुपयों से लिये गए ये । घर पर भौ वे क्या खाली बैठते ই?




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