अनुभवानन्दलहरी | Anubhavanandlahari

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Anubhavanandlahari  by शंकरानन्दन जी - Shankranandan Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्वंयप्रदाये संहित॑: 1 - १३ होनेवाली हे (शंरीरःभ्वभ्र शतां) शंदरेरूपं गदे. के-मश्रय है. स्थिति जिस कीं. ऐसी जी. विषल्ञता'- कीं समानं अपात -रमणीयरूप [ देखनेमात्ररी सुन्दर 1. लक्ष्मी ই दे शिष्य! तिसकी ते आश्रय करेगा तो अवश्य सृत्युकी प्रांप हीवेगा-॥- 8. ॥. छव बारयावस्थां की दखंरूपताका निरूपणं. কই 2০51 बी बांल्यरोग श॒वाकुल हितहर॑ शान्तेः- कुठार पर युक्तायुंक्त विवेकश न्यहंद्य॑ मूखादि सेधाश्रयम्‌ ॥ नानादीषदशा विलुब्धमनसां मातगवेचरग्वरं त्व च- दाश्रयसे विवेक मतिमन्‌ म्रयुस्तदा. तेधवम् 9০. ` अन्वय पएदाथ~दे विवेकमातिमन्‌ ( चत्‌ वास्यं से आश्रय से तंदा ते धवं शर्युः भविष्यसि ) हे शिष्य !यदि वारयावस्था को तू आश्रय करेगो तो अवश्य रूत्युको प्राप्त हीकेगा केली दै. वालयः वस्था( रोगशर्ताकुल ) सेफडा रगा करके खा- कुल है (८; हितंदरं >) कल्याणं मे प्रतिबधक्रूयः संत्रु हैं ( शान्तेः कुंठारं परं ) शान्तिरुपीअर्ूंत-




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