कागड़ा | Kagada

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Kagada by महेन्द्र - Mahendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरा गाँव २१ धुध में सूरज एसे दिखाई देता जसे चाद हा। भैयें पादी पीन के विए तालावे की ओर भागती, थथनी पानी म डालतीं और ठड बे' मारे झट से वाहुर तिकाल लेती। खेस ओढे, और बाहा वी क्ची बनाए আহ বার নেতার पर अपना काम हिम्मत से करते जात । मुख्े भी बहुत सर्दी लगती | गम स्वेटर और कोट पहने, तथा सिर पर गम गुलूबन्द लपेटे जब प्रात काल नित्यक्म वे लिए, घर से खेतो की जर निकलता तो चरणसिंह मसद कहता, “सरलार जी ! आप पूनी वी तरह लिपटे हुए कहाँ जा रह हैं?” पौप के महीनेमे छत पर धूप सकने का वडा आनन्द है! तथा साग और मक्‍वी की गोटी कुछ और ही मजा देती है। पाल्युन और चत भ लेता की बहार जोबन पर होती । सरसा के पीले फूला के साथ गेहें के खेत ऐसे लगत जस एक हरी तस्वीर पीले चौखट म जही हुई हो । साग तोडन वालिया के लाल पीले नीजे दुपट्रे हरी लहलहाती फसलो मक्तिने सुदर लगते | लड़के छोलिया वी टाट के पढा्े वजात और जौ की कोपला की पीपनियाँ । नगे पैर, ठडी रेत पर चलने में और भी ग्रानद आता । यह इपका के' लिए फुरसत का महीना है। वसाखी के भेले पर कुश्तिया होती ओर लड़के लड्ढ, और जलंबिया जी भरकर खात । जव गेहं की पसल कट युक्ती तो किसान गहाईम जुट जात 1 चिलचिलाती धूप के फररि चलते ओर छाजा से उडाई होती । जव ज्यैष्ठ आपाढ मास নএলাজ कौ भराई हो चुक्ती तवे योता का दौर शुरू होता 1 इर यौता मे गावो के लोग एक दूसर को दावत खिलात--माश (उडद) की दाल ओर लाल मिर्चोसेरेगौ हुई खट्टी लस्सी ने पकौडा वा रायता और लौहे पर सिकी हाय की रोदियाँ । ये १६१६८ वी वात है। अभी गावा में चुनाव की बीमारी नहीं पहुँची थी, जौर लोग मैम्वरी और मिगिस्टरी वै सपने नही देखने थ ) सव बडे प्यार-सलीवे से रहत थ और एक-दूसरे के दु ख सुख क साभी होगा थ । अभी मूह अंधेरा ही हाता, और मुबह का तारा चमक रहा होता कि हम रोटियाँ और अचार भगोछे मं वाधकर बलग्गनो के स्कूल को নল दनं । बहुत- सार तो स्कूल पहुँच जात पर कइ पीर फ्लाही ही रुक जाते और ग्राम को धर आकर बताते कि पढ आए हैं । बहुत-से लोग गर्मी पसद नहा करत, पर भुझे गमिसो के महीने बहुत अच्छे लगते हैं । दित को ठड पानी से नहाते का मजा और रात को मकान वी छत्त पर साने का । खुले आसमान के नीच सोकर प्रद्ृति से सीघा सम्पक स्था पित हो जाता है। चारपाई पर लेटबर, चाद-तारा वी ओर देखना गौर देखत टी चले जाना । মক্কা म चाद की दनिक यात्रा क्तिनी रोचक है ! पहाडा के पीछे से घुधली सी रोशनी का दिखाइ दना, घोरे घीरे उसका तज होना और फिर सारे आकाश मे फल जाना चाँद और बादला की आँख मिचौनी और भौ आनन्द दती।




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