अपलक | Apalak

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Apalak by बालकृष्ण शर्मा - Balkrishn Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थक्ित सागरुज्य याञ्चा फिर वही क्या न सुनोगे विनय हमारी ! उड़ गए तुम निमिष भरम तेरा मेरा नाता स्याह! पण्ढ सिहाबलोकन सखे ! हम हैं मरत फक्कीर भिय, त्वम-मय कर दो मम तन-मन प्राण, तुम्हारे कर के कंकण सजन, करो सन्तत रस-वषेण तुम न आना अतिथि बनकर मेरे भौन लगी आग आओ, प्रिय हृदय लगो मेरा क्या काल कलन ! बदु रहा दै भार मेरा आा जाओ, प्रिय, साकार আলী विस्मरण सखि, वन-वन घन गरजे तिमिर-भार अस्तित्व-नाव नयनन नीर भरे निराशा क्यो हिय मथित करे ९ घन-गजेन.ज्ञण पलक चख चमक भरो ५६ ५८ ६० ६२ ६४ ६६ ছল ७१ ५७४ ७६ নে ८२ ८४ ८६ ८८ ६९ ६४ ६६ ६य १०० १०३ १०४ १०७




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