संस्कृत काव्य - शास्त्र में प्रतिपादित काव्य - मार्ग एक समीक्षात्मक अध्ययन | Sanskrit Kavya - Shastra Men Pratipadit Kavya - Marg Ek Samixatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'स्पफटरुटलघुमधुरयित्रकान्तशब्दसमयोदारालकूत गद्य पद्य।' काव्यशास्त्र की उपलब्ध परम्परा की सर्वागपूर्ण निश्चित सूचनाएँ हमे इस काल तक के किसी भी ग्रन्थ मे उपलब्ध नही होती है। उपर्युक्त प्रसगो के आधार पर हम यह अनुमान अवश्य ही कर सकते है कि काव्यशास्त्र का उदय अवश्य ही हो चुका था। राजशेखर ने काव्यशास्त्र की उत्पत्ति का सम्बन्ध नटराज शकर से जोडा है। शारदातनय ने अपने “भाव प्रकाशनः में नाट्यशास्त्र पर रचित “योगमाला ग्रन्थ को भगवान शडकर से सम्बद्ध कर “योगमाला' के द्वारा भगवान शड्कर के विवस्वान को ताण्डव लास्य, नृत्त ओर नर्तन का उपदेश दिया था ऐसा सकेत किया है। राजशेखर के अनुसार शकर ने ब्रह्मा को सर्वप्रथम काव्यशास्त्र का उपदेश दिया तथां ब्रह्मा ने अपने मानसजात १८ शिष्यो को यह ज्ञान प्रदान किया। उन अट्‌ठारह शिष्यो ने सम्पूर्णं काव्यशास्त्र को अदट्‌ठारह भागो मे विभक्त कर प्रत्येक भाग पर एक ग्रन्थ लिखा हे तत्र कविरहस्य सहस्राक्ष समाम्नासीत, ओक्तिक मुकत्तिगर्भ , रीतिनिर्णय सुवर्णनाभ, आनुप्रासिक प्रचेता. यमोयमकानि, चित्र चित्राड्‌गद्‌, शब्दश्लेष शेष , वास्तव पुलस्त्य ओपम्यमौोपकायन , अतिशय पाराशर , अर्थश्लेषमुतश्य, उभयालडकारिक कुबेर, वैनोदिक कामदेव, रूपकनिरूपणीय भरत, रसाधिकारिक नन्दिकेश्वर, दोषाधिकरण धिषण, गुणोपादानिकमुपन्यु, ओपनिषदिक कूचमार इति| इन दोनो दही आचार्यो द्वारा प्रदत्त नामावली मे बहुत से नाम तथा उनकी सत्ता प्रामाणिक नही है, किन्तु भाव प्रकाशनः मे नारदमुनि का नाम आया है ओर आज बडोदा से प्रकाशित नारद सगीत नामक ग्रन्थ सम्भवत उन्ही का हे। इसी प्रकार राजशेखर द्वारा प्रदत्त नामावली मात्र कवि की कल्पना दही नही हे. क्योकि इस सूची मे भरत तथा नन्दकेश्वर के লাল भी हे, जिनके ग्रन्थ आज प्राप्त एव प्रकाशित भी हे, फिर नामो के ऊपर १ काव्यमीमासा १८१ (अध्याय १, पृ १) [10]




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