भारत का भाषा सर्वेक्षण | Bharat Ka Bhasha Sarvekshan

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Bharat Ka Bhasha Sarvekshan by सर जार्ज अब्राहम प्रियसंस - Sar Jarja Abraham Priyasans

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पश्चिमी हिन्दी भूमिका भौगोलिक स्थिति प्राचीन सस्छरत भूगौखणास्तरियो का मघ्यदेल तथा पश्चिमी हिन्दी का क्षेत्र , लगभग एक ही है । मध्यदेश पश्चिम में सरस्वती तथा पूर्व में वर्तमान इलाहाबाद के बीच का प्रदेश था। इसकी उत्तरी सीमा हिमालय पर्वत श्रेणी तथा दक्षिणी सीमा नमंदा नदी थी । परम्परानुसारं, इन सीमाओं के मध्य में ब्राह्मण धर्म का पवित्र देश स्थित था । यह हिंदू सस्क्ृति का केन्द्र तथा उसके देवी-देवताओं का इहलौकिक निवास-स्थान था । पश्चिमी हिन्दी का प्रसार पूवं मे इलाहावाद तक नही दै) इसकी पूर्वी सीमा लगभग कानपुर है, कितु श्नन्य वातो मे जिस क्षेत्र मे यह वोली जाती है वह लगभग विलकरुल मध्यदेश ही है । सयुक्‍त प्रान्त (वर्तमान उत्तरप्रदेश) के पश्चिमी भाग, पजाव के पूर्वी ज़िलो, पूर्वी राजपुताना (राजस्थान), ग्वालियर, बुदेलखड तथा मध्यप्रान्त (वर्तमान अध्यप्रदेश) के उत्तर-पश्चिमी ज़िलों में यह स्थानीय भाषाके रूप मे बोली जाती है। इसके अतिरिक्त इसकी सबसे महत्त्वपृण बोली हिन्दो- स्तानी लगभग पूरे भारतीय प्रायद्वीप में वोली और समझी जाती है तथा जनता के कुछ वर्गों की मातृभाषा भी है । बोलियाँ हिन्दोस्तानी पश्चिमी हिन्दी के अतर्गत पाँच वोलियाँ आती है--हिन्दोस्तानी, वाँगरू, नत्रजभाखा, कनौजी तथा बवुन्देली । स्थानीय भाषा के रूप में हिन्दोस्तानी पश्चिमी रुहेलखंड, गगा के ऊपरी दोआव तथा पजाब के अवाला ज़िले में बोली जाती है । मुसलमान विजेताओं द्वारा पूरे भारत में इसका प्रचार हुआ और इसमें साहित्यिक विकास भी यथेष्ट हुआ । इन परिस्थितियों के अतर्गत इसके तीन प्रमुख विभेद मिलते है---साहित्यिक हिन्दोस्तानी का मुसलमान तथा हिन्दू दोनों ही समान रूप से साहित्य तथा वोलचाल में प्रयोग करते हूँ, उर्दू जिसे मुस्लिम शिक्षा-पद्धति को अपनाने वाले हिन्दू तथा मुसलमान दोनो हीं प्रधानतया प्रयोग में छाते है और इसका तीसरा आधुनिक विकास हिन्दी है, जिसका प्रयोग केवल हिंदू पद्धति के अनुसार शिक्षित हिंदू करते हैं । उर्दू के भी दो




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