सोच विचार | Soch Vichar

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Soch Vichar by गोपीनाथ सेठ - Gopinath Seth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आप क्‍या करते है ? १३ देता हैं उसी इकट्ट हुए व्याज में से । देता ऋम हैं, लेता ज्यादा दे इससे वह साहुकार होता जाता है और मोटा होता जाता है । श्रगरः चह दे ज्यादा ओर ले कस,--तो না হুল লন হ্যা কি डसने कास कस किया ? क्यों ? उसने वो देने का कास खूब क्रिया लेकिन इस तरह एक दविच आयगाः कि वह साहकार नहीं रहेगा ओर निकम्से आ्रादुर्सियों को गिनती में थ्रा जायगा | तो साहकारी 'काम! क्या हुआ ? खूब काम करके सी आदमी जब निकम्मा बन सकता दे ठो उससे तो यही सिद्ध होता द्ू कि साहूकारी : अपने-आप में कुछ काम? नहीं है । शरोर राजा, राजकवि, कोषिलर, एम० पु० पाप्त,--ये सरव जो-जों भी हैं क्‍या वह सेरे अपने श्रीवास्तव होने से अधिक हैं ? में श्रीवास्तव होने के लिए ङ्च नहीं करता हँ! दस यह करता दूँ कि अपने बाप का. बेटा बना रहता हूँ । तब, इन लोगों में, इनकी डपाधियों से अपने-आप में कोन सा काम करना गर्सित हो गया,--यह मेरी समस्त में कुछ्ठ भी नहीं श्राता हैं । में सी यात करता हूँ और कमी-कभी तो बहुत बढ़िया चात करठा हु,-- सच, आप दबाराम को झूठा समन्त! कनम-वेकाम कौ चात द्विखता भी हूँ, अपने घर में ऐसे बेंठठा हूँ. जेंसे कॉसिलर कॉसिल में बंठता है, बच्चों पर नवाब बना हुद्दमत भी चलाता हूँ,-- लेकिन, यदट्ट सम्र करके भी बड़ी आउानी से छोटा आदमी ओर निकम्मा आदमी बना हुआ हूँ । इससे सुझे कोई दिक्कत नदीं होती । फिर बड़ा आदमीपन क्या ? और घह हैं क्या जिसे काम! कहते इं ? एक किताव है, गीता। ऊपर के तमाम स-'कामों श्लादमी भी कहते सुने जाते ६ क्लि गीता बढ़े 'काम! की किताब दूं । में ऋड-सति क्या उसे ससककू । पर एक दिन साहरुपर्वक्कत उठाकर জী उसे खोलता हूँ, तो देखा, लिखा है, 'कर्म करो । कमं मं श्चक्म कूरो \ यह क्या बात हुई चस्ना चक्सं हे, तो वह झर्म से क्यों किया




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