भास्करप्रकाश | Bhaskarprakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
428
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्रथभसमझासः । १५
ः अत्युत्तर-कृपा करके इस श्लोक से पू्े के ४ झोकों को ओर सुन लीजिये तब
आप को विदित होजायगा कि यह झोक ओर इस का अर्थ क्या हुआ । यथा--
तपस्तप्त्वासजयन्तु स रचयं पुरूषो विराट् ॥
ते मां वित्तास्य स्वेस्य स्रष्टारं दिजसत्तमाः ॥२३॥
अहं प्रजाः सिसृक्षुस्तु तपस्तप्त्वा सुदुश्चरम् ॥
पतीन्प्रजनमसुजं महर्षोनादितोदहा ॥ ३४ ॥
मरीचिमत्रयज्विरसो पुलस्त्य॑ पुलह কত ॥
प्रचेतल वसिष्ठ च भृगुं नारदमेव च ॥ ३५ ॥
एते मनृस्तु सप्तान्यानसुजन्भूरितेजसः ॥
देवान्देवनिकायांश्च महषीश्चामितोजसः ॥३६॥
यक्षरक्षः पिशाचांश्रेत्यादि ॥ ३७ ॥
अे-परन्त॒ उस विराट पुरूषने सूवयं तप कर के जिसे उत्पन्न किया, है
द्विजो ! वह इस सब का स्त्रष्टा में हूं, यह जानो (स्वायंभुव मनु का वचन ऋषि-
यों से )॥ ३३ ॥ जब मेंने सुदुश्चर तप कर के प्रजा रचनो चाही तौ आदि में दश
महि प्रजापतियों को रचा ।। ३४॥ सरोचि अश्रि अद्विरा पुलस्त्य पुलजह ऋतु
प्रवेता बसिष्ठ भगु ओर नारद को ॥ ३४॥ इन्होंने अन्य सात बड़े तेजस्वी स-
नओं को रचा ओर देवतों, देवस्थानों और तेजस्विमहषियों को ।। ३६ ॥ यक्त
राक्षसपिशाचादि को भी ।। ३१ ४
प्रकरण का पूर्ण विचार करने से इस झोकों के अनुसार यह नहीं सिद्ध
होता कि यक्ष राक्षसादिकों को ब्रह्मा ने उत्पत्त किया, किन्त विराट् ने
स्वायम्भुव मन को, उस ने मरोच्यादि १० प्रजापतियों को और उन्हें ने
सधरष्टि यक्ष राक्षसादिको रचा। आप ने ऊपर यह अथ प्रकरणविरुद्ध किया
कि ब्रह्मा ने इच्हें रचा। इस से क्या निश्चय हुआ कि परमेश्वर ते तौ यक्ष राक्षस
पिशाच योनि ( सन॒ष्य के अतिरिक्त ) नहों रथी किन्त उस के विरुद्ध १०
प्रजापतियों ने रचडालीं॥ इम मनुस्मति के झोकों सें इतनो विप्रतिपत्ति हैं।
९-जगत् का स्त्रष्टा परमात्मा है या !० ऋषि? २-झ्ोक ३३ में मन् आप को
सब जगत् का स्त्रष्टा बताता है फिर आगे झोक ३६में ऋषियों को । ३-स्वायम्मुष
सौ कहता हौ हि कि मेरे पुत्र मरोच्यादि १० हुवे फिर उन पुत्रों मे अन्य ७
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