पद्य - प्रसून | Padya Prasun

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Padya Prasun by अयोध्या सिंह उपाध्याय - Ayodhya Singh Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कवि-परिचय आप को मधुर जँचा, उसे आप न सादर अपनाया है} आप संस्कृत वृत्त द्रतविलम्बित और मन्दाक्रान्ता लिखते हैं डे ढंग पर चौपदे और छपदे की रचना करते हैं, हिन्दी के छप्पे और दोहे बनाते हैं, तो बेंगला वृत्त पयार! का भी प्रयोग करते हैं । और, सो भी, पूरी सफछता के साथ । उपाध्याव जी पूरे शब्दू-शिल्पी हैं। आपके एक एक शब्द चुने-चुनाये नपेतुले होते हैं। जहां आपने केवल. संस्कृत की ही सरिता बहाई है, वहां भी--उस सरिता-स्रोत्त पर भी--आपकी सुन्दर शब्द-तरंग-माला अठखलियां करती दीख पड़ती है। 'बनलता' और भाधुरी' नामकी कविता पाठक पढ़ देखें । यहां एक बात याद आती है। इस 'पद्म-प्रसुन' की छपाई के सम्बन्ध में इन पंक्तियों के लेखक का आपकी सेवा में बार बार जाने का मौका मिला है। “दिव्य दोहे” का विषय-विभाजन करना था । में जल्दी मेधा) मेरी शीघ्रता देख कर आपने मरे अनुरोध पर शीघ्र ही विषय- विभाजन कर दिया। एक विषय का नाम रखा गया-- पुष्प-क्यारी ! किन्तु जब दूसरे दिन में पुनः पहुँचा तो आपने कहा-- देखिये कल जो कापी आप ले गये थे उसका शीर्पेक पुष्ष-क्यारी न रख कर 'कुसुम-क्यारी' रखिय। दोनों के का के




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