खून का टीका | Khun Ka Teeka

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Khun Ka Teeka by यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'

Add Infomation AboutYadvendra SharmaChandra'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रात्रि का उन्मन आँचल मानवीय मर्मान्‍्तक क्रन्दन एवं चीत्कारो के सग विज्ञाल सस॒ति पर श्राच्छादित हुआ । मारू का उन्माद भरा स्वर जो वीरो के कर्ण-कुहरो मे रक्त जाने पर भी सुनाई पड रहा था, अब आत्तनादो में परिवर्तित हुआ जान पडा । राणा अरिसिह श्रात-जलात से अपने खेमे में मुख-प्रक्षालन करके शरया पर अधणायित थे । सेवक भोजन का थाल उनके सम्मुख लाया । उन्होंने अ्रस्वीकृति सूचक सिर हिला दिया । पुन विचारमग्न होकर, हथेली का सम्बल लेकर बेठ गए । एकात व गहरा मौन । मन में विचारों का श्रविराम आन्दोलन ! सोच रहे थे, “युद्ध क्यो होता हैं ? मनुष्य मनुष्य को इतनी निर्द- यता से क्यों मारता है ? हम सब सम्य कहलाने वाले प्राणी दुर्बुद्धि के पस्व पर आरूढे होकर नगर के नगर क्यो घ्वश कर देते है ?'' अरिसिह अणात हो, उठ खडे हुए । उल्का पवन के भोकरे से हिल उठी! उसके कापते प्रकाश में सारा का सारा खेमा डोलता हुआ प्रतीत हृग्रा मानो चरली पर भूकम्प झा गया हो । क्षण भर के लिए वे स्वयं भयभीत हो उठे । क्षणिक विचार मन में आया कि विनाश पर विनाश हो रहा है। अपने विशाल भाल पर हथेली फेर कर वे मत्त ही मन यडबडाए--उसका मल कारगा हैल- मन॒प्य वी अधियार लिप्मा। रूप और श्रथ की चिरन्तन भूव । यवनपनि पिलजी मेवाड के विपुल सौन्दय के पीछे उन्मत्त रौकर उसको विनष्ट वरने पर तत्पर हो णया रै उसकी काम-तूप्णा नैराश्य के आवरण में आच्टन होकर विबश पर केन्द्रित टौ गई 1 वासना मेभ्राकट इवा वह मानवीय सबवेदनाओं से परे होकर मद, दभ, अहकार, ईर््या, देप अनाचार और इहिसा वी प्रति्माति वन गया है। पशञ्जिनी नहीं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now