क्रान्ति की भावना | Kranti Ki Bhawana

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Kranti Ki Bhawana by क्रोपोंटकिन प्रिंस - Kropotakin Prins

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ १५. चाहिए, जालिमों को खत्म कर देना चाहिए।” लेकिन ज्योंही कुछ ज्ञांति होती, प्रिंस क्रीपाटकिन अपने वैदेशिक लहजे में वड़ी विनम्नता से वराबर यही कहते सुनाई देते---/नहीं, विनाश नहीं, हमें निर्माण करना चाहिए। हमें मनुष्यों के हृदय का निर्माण करना चाहिए 1” ये दाव्द तो विल्कुख महात्मा गांषी जैसे ही प्रतीत होते हैं; और उन दिनों---१८९३ में--महात्माजी ने दक्षिण अफ्रीका में वकालूत के लिए प्रवेश किया ही था । देश का--देश का ही नहीं, संसार का--यह दुर्भाग्य हैं कि हमारे यहां संसार के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध विचारकों के विचारों का सारांश निकालनेवाले विद्वान्‌ बहुत कम हैं, और खास तोर से आज तो जबकि दुनिया चौराहे पर खडी हृद है मौर उसके सामने ठीक मार्ग ग्रहण करने का प्रदन उपस्थित है, यद्‌ विपय गौर भी अधिक महत्त्वपूर्ण वन जाता है । एक मार्ग हैं क्रोपाट- किन त्तया गांधीजी का और दूसरा हैँ मार्क्स और स्तालिन का । महापुरुषों के जीवन-चरित में अद्भुत स्फृत्ति प्रदान करने की सामर्थ्य होती है, और इस. दृष्टि से क्रोपाटकिनं का जीवन-चरित खासा महत्त्व रखता है । क्या अजीव सिनेमा-जंसा दृद्य वह्‌ हमारी ख के सामने ला उपस्थित करता है ! एक अत्यंत प्राचीन और उच्चवंद में जन्म, जारशाही के अत्या- चारों का घनघोर अन्धकार, गुलामी की प्रथा का दौर-दौरा, आठ बर्ष की उम्र में ज्ञार के पापंद चालक, १२ वर्ष की अवस्था में फ्रेंच भापा का अध्ययन ओऔर रुसी राजन॑तिक साहित्य में रुचि, अपने बड़े भाई एलेक्जेंडर के साथ हादिक प्रेम, फीजी स्कूल में शिक्षा, साइवेरिया की यात्रा--गवर्नर जनरल के ए. डी. सी. वनकर वहां से त्यागपत्र, फिर सेंट पीटर्सबर्गं के विश्वत्रिद्यालय में पांच वर्ष तक गणित तथा भूगोल का अध्ययन, क्रांतिकारी दल में सम्मिलित होना, यूरोप की यात्रा और वहां जराजकवादी संस्थाओं का संपर्क, रूस लौटकर क्रांतिकारी विचारों का प्रचार आदि । इसके बाद का दृश्य ए. जी. गाडिनर के रेखाचित्र मेँ देख रीजिये : “नाटक का पर्दा बदलता हैं। जाऊं निकोलस की अंबेरी रात दूर हो गई। लेकिन उसके बाद दासत्व-प्रया चन्द होने के कारण थोड़ी देर के




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