कोशोत्सव - स्मारक - संग्रह | Koshotsav - Smarak - Sangrah

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Koshotsav - Smarak - Sangrah by गौरीशंकर हीराचंद ओझा - Gaurishankar Heerachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दा सललम दी इसने बहुत उन्नति कर्ती; उस समय संयुक्त प्रत के न्यायालयं में नागरी लिपि का प्रचलन नहीं था। इस विषय को लेकर नागरीप्रचारिणों सभा ने बहत आंदेक्षत किया ! महामना पंडित मदनमेहन मालवीय, बाबू श्यामसुंदरदास और बाबू राधाक्रष्णदा स ने जिस लगन से इसक लिये प्रयन्ष किया, वह प्रशंसनीय है। बाबू कृष्णबलदेव वर्मा शलौर पंडित कंदारनाथ पाठक ने भी মিল भिन्न स्थानों सें घूमकर इसका प्रचार किया। अंत में पाँच वध तक निरंतर आंदोलन करने के बाद २१ अ्रप्रेश १८६०० को संयुक्त प्रांत की सरकार ने देवनागरी की भी न्‍्यायाह्यय की लिपि स्वीकार कर लिया । इतने ही से सभा संतुष्ट नहीं हुई, परंतु इसने हिंदा में अजियां देने और अन्‍य काये करने का प्रचार प्रारंभ किया, जा अब तक चल रहा है ! सभा ने जो दूसरा सहत्वपूणों काय किया हैं, वचद्द प्राचीन हिंदी पुस्तकों की खाज़ हैं | दी का प्राचीन खाद्ििय अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य से कम नहीं था, परंत उस तरफ किसी ने ध्यान नहों दिया । सभा ने बंगाल एशियाटिक सेसायटी और ऋष प्रांतीय सरकारों से हिंदी पुस्तकां की खाज करने के लिये लिखा पढ़ी की! बंगाल की एशियाटिक सोसायटी और संयुक्त प्रांत की शरकार ने भी इस संबंध में कुछ प्रयत्न किया, परंतु बच्द सफल न हुआ। : यद्ध देखकर सभा ने स्वयं एक योजना तैयार की, जिसके लिये संयुक्त प्रांतीय सरकार ने १०० में ७००) रूपए दिए और १८०१ से ५००) रूपए प्रतिवर्ष देना निश्चय किया ! १६१६ में यदह महा- यता १०००) रुपए प्रतिवर्ष और १<२२ में २०००) रूपए प्रतिवर्ष हो गई । इस खद्दायता से सभा ने इधर बहुत कायये किया, जिसको वार्षिक या चैवापिक रिपोर्ट गवर्मंट छापती रही है। इन रिपोर्टा की भारतीय और विदेशी विद्वानों ने बहुत पसंद किया ! बाद श्यामसुंदरदास, पंडित श्यामविद्दारी सिश्र॥ पंडित शुकद॒वबेहारी मिश्र श्रौर बाबु हीरालाल से इस संबंध में समय মন पर म्ब




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