कैरली साहित्य दर्शन | Kerali Sahitya Darshan

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Kerali Sahitya Darshan by रत्नमयी देवी दीक्षित - Ratnmayi Devi Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-तेरह- श्रह त श्रोर चिदिष्टाद् त की जीवनव्यापी चर्चा करने की श्रादत, शाक्त और वेष्णव सम्प्रदाय की समृद्धि श्र श्री शंकराचायं की चलाई हुई सर्वससन्वयकारी पचायतन-पूजा ! फिर तो पूछना ही क्‍या है ? जो लोग ससन्वय-वृत्ति से विविधता की उपासना करते हे उन्हें कदम-कदम पर सघर्ष को समझकर उसे दूर करने की तरकीबें ढूढनी पड़ती है । उनमें नर्मरसिकता श्रौर विनोद-वृत्ति श्रा ही जाती है । उच्च भूमिका पर भ्रारूढ़ हुए बिना संघर्ष दूर नहीं हो सकता। साथ- साथ तत {कि तत कि वाली निःसारवादी विषाद की भूमिका धारण किये बिना चलता ही नहीं । मेरो कल्पना है कि ये सारे तत्त्व केरल- साहित्य सें श्रा ही गये होगे । हमारी ससस्‍्कृति की एक विचित्र खूबी है। पद्चिम के लोग हर बात मे ्रपनी मौलिकता श्रागे करने के प्रयास मे कभी थकते नहीं है । यहाँ, हम लोग पुराने कवियो के काव्यो का श्रनृवाद करते, पुराने श्राख्यान नये ढेगं से कहते भ्रौर बिलकुल भ्र्तन नये-नये श्रनुभवो को भी व्यक्त करते, पुरानी चीजो का श्रालम्बन करना ही पसन्द करते हे। भारत की श्रनेक भाषाश्रोका साहित्य देखते हुए मेने इतना तो पाया कि रामायण-महाभारत का एक भी श्रनुवाद केवल तजु मा नहीं ই। হল महाकाच्यो का उपजीचन करते हए हर एक कचि श्रपनी सारी-की-सारी जीवनानुभूत्ति और श्रपना सास्क्ृतिक संस्करण व्यक्त कर देता है! शेक्पपियर श्रौर टेनिसन ने पुरानी बात्तो को नवीनता दी । इसपर पश्चिम के लोग नाज करते है । हमारे यहाँ करोव-करीव हरएक कवि ने अपने भ्रनुवाद के वारा श्रपनी नवनवोन्मेषशालिनी परत्तिभा ही च्यक्त की हो, इतना ही नही, सास्छृत्तिक श्रादर्शो में मी नये-नये श्रीर श्रभूत- पूर्चे शिखर खड़े किये हे । भारत की श्रनेक भाषापश्नों के साहित्य का आस्वादन करते গীত साहित्य का इतिहास पढ़ते एक विशेषता पाई जाती हैं कि इन सब प्रान्तो की भाषा्नो का भ्नौर उनके साहित्य का विकास एक ही टंग से




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