आहुतियाँ | Aahutiyan

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Aahutiyan by गणेश पांडेय - Ganesh Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) ই रहा । आस्ट्रियनो ने कुछ पीछे हटकर उस रात को आराम किया । दूसरे दिन सबेरे शत्रु पक्ष से एक आदमी शान्ति की सफेद पताका उड़ाता हुआ उस किले के पास आकर बोला “हम लोगो के पास तुम्हारी सेना से बहुत अधिक सिपाही हैं । तुम लोग परा- जय स्वीकार कर आत्म-समर्पंण करो । व्यथं क्यो प्राण गैंवाते हो । . इस वात का उत्तर देने के लिये एक प्रिनेडियर क्लिलें के धाहर आकर बोला--- तुम अपले कनल के पास जाकर कह्दो, हम लोग अन्तिम घड़ी तक इस किले और गिरि-संकट की रक्षा करेगे । नेपोलियन के सिपाही श्रात्म-समर्पण किसे कहते है, यह जानते तक नहीं ।” फिर क्रिले का फाटक बन्द होंगया। युद्ध आरम्भ हुआ । विपक्षी दल ने एक बड़ी भारी तोप लाकर पवत के उस रन्धरके मुँहपर स्थापित कर दी। किन्तु क़िलें के ऊपर गोला बरसाने के लिये तोप किले के ठीक सामने स्थापित करनी पढ़ी । अभी ताप यथा-स्थान लगायी भी नहीं गयी थी कि इतने में किले से गोली का वरसना आरम्भ हो गया। आस्ट्रियन गोलन्दाज उस आधात का सह न सका। तोप को हटा कर अन्यत्र ले गया । तोपसे काम चलता न देखकर आस्ट्रियन सेनानायक ने कहा--“/बन्दूक छोड़ो । बन्दूक की सहायता से पैदल ही दुर्गपर आक्रमण करो ।”




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