सामान्य भाषाविज्ञान | Samanya Bhasha Bigyan

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Samanya Bhasha Bigyan by बाबूराम सक्सेना -Baburam Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १५ ) (५८) एक ही विचार के गचक दो बब्दा (५८-१९) या হী वाक्य-विन्यासौ বা জিনতা (५९) वया विदेणी शब्दों का स्वदेशी परिचित शब्दों से मिछला- जुलता उच्चारण (५९-६० ) । হলনা अध्याय--ध्वतियत्र पृ० ६१-६७ ध्वनि यंत्र (६१) श्वास की विचित्र विक्रति से -वनिसष्टि (६२) उवास- नालिका तथा भोजननाछिका (६२ ), स्वस्यत्न तथा स्वरतन्त्रियों की चार विभिन्न स्पितियाँ (६२-६३ ) । ध्वनियत्र के विभिन्न अवयव--सुखविवर आदि (६३) अलिजिद्न की तीन विभिन्न अवस्थाएँ (६३-६४ ) , जीभ की विविध अवस्थाएँ (६४- 8५), इस प्रकार स्थानभेद व प्रयत्नभेद से अनन्त व्वनियों की सृष्ठि (६६) | घ्वनि का लक्षण (६६) तथा तीन अवस्थाए (६६) , प्रो० डेनियल जोन्स के मत से ध्वनि का लक्षण (६६-६७) । व्वनिग्नाम (६७) | ग्यारह॒वों अध्याय--ध्वनियों का वर्गीकरण पु० ६८--७६ स्थान तथा प्रयत्त पर ध्वेनियोका द्विता वर्गीकरण (६८) । स्वर तथा व्यनन (६८-६९) और उनके लक्षण--प्राचीन (६९) तथा आधुनिके (६९), स्वर तथः व्यजन का मेद (६९-७०) । स्वरो का वर्गकिरण (क) जीभ के विभिन्न स्थाना पर--अग्र, मध्य तथा प्च स्थान (७०) तथा (ख) मुख वै खुलने पर सुभ, चिवृते, अथसवृतं तथा अधविवुत (७०-७१) । व्यजनों का वर्गकिरण (कर) संघोष तथा अधांप (७२), (ख) द्रयोष्ट्य, दन्त्योष्ट्य, दन्त्य, वत्स्य, तारुव्य, मैय, अद्िजिह्गीय, उपाछिजिह्खीय तथा स्वरथतर-स्थानीय (७३), (ग) प्रयत्न भेद से---स्पश सपर्षी, पाश्विक, छोडित तथा उत्क्षिप्त (७३-७४), (घ) निरनु- नासिक तथा अनुतासिक (७४-७५) । य्‌ और व्‌ के दो रूप (७४), अल्पप्राण और महात्राण (७५)। मुख्य तथा गौण स्थान (७५-७६) । बारह॒वाँ अध्याय--ध्वनियों के गुण पु० ७७.८१ मात्रा, सुर्‌ मौर बलाघातत (७७) । मात्रा के तीन प्रकार--हुस्व, दीघं तथः प्ुत { ७७), हृम्वत्व दीघत्व का निणय (७८), मात्रा को मकित करने के साधन (७८-७९) | सुर---उच्च, नीच तथा सम (७६) इसका भाषाओ मे प्रयोग (७९-८० ) | बछाधात उसके प्रयोग तथा प्रयोग के नियम (८०) । इन गुणां का भिन्न भिन्न भाषाओ मे भिन्न भिन्न प्रयोग (८०-८१ ) 1*




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