नागरीप्रचारणी पत्रिका भाग - 3 | Nagaripracharini Patrika Bhag - 3

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Nagaripracharini Patrika Bhag - 3 by गौरीशंकर हीराचंद ओझा - Gaurishankar Heerachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परमार राजा भोज का उपनाम “त्रिमुवन, नारायणः | ५ कै मेन.ड की पुरानी राजधानी) काताडा उस समय घवल ने मेवाड की सेना की रक्षा की थी !! इससे संभव रहै कि मजने मेवाड पर चढाई कर आहाड का तोड़ने पर चित्तीौड़ का किला और उसके आसपास का मालवे से सिल्ा हुआ प्रदश अपने राज्य मं मिला लिया दही, पोरवाड महाजन विमलशाह कु वनवाए हुए आवु,पर के देलवाड़ा गाँव के प्रसिद्ध जन मंदिर ( आदिनाथ ) विमलवसही के जीणद्धार क वित स० १३५८ अ्यघ्र शादि + कं शित्षालेख्र म॑ उक्त मंदिर क कक बनने को विषय में लिखा है कि “चंद्रावती पुरी का राजा घंधु (घंघुक) वीरों का अग्रणी था| जब उसने राजर मीमदव को सेवा स्वोकार न क्म तब राजा ( भीमदेव ) उसपर ऋद्ध हुआ जिरसे बह सनसस्‍्वी ( घंघक ) घारा कं गजा माज के पास चला गया | फिर राजा भीम ने प्राग्वाट ( पोरवाड़ ) वंशी मंत्री विमल को अबुंद ( आबू ) का दडपति (सेनापति, हाकिम ) वेनाया । उसने विं० से८ १०८८ में आयू के शिखर पर आदिनाथ का मंदिर थनकुया! । « ( £ ) अंक्तवाघाट घरि: प्रकटमिव मद्रं मदपाटे जटानां जन्ये राजन्यजन्ये जनयति जनताजं (१) रण मुजराजें | श्री' माणे प्रणट हरिण हव भिया गूज्जरेशे विन तस्लेन्यानां स(श)रण्ये हरिरिव द्वारणे यः सुराणां व(ब)मुब॥+०॥ ( एपि० इंडि० जि० १५, ए्ृू० १२-२१ ) सुंज की सेवाड़ पर चढ़ाई का बढाँ के रप्ज़ा शक्तिकुमार के समय में होना अनुमान किया जा सकता है । यदि मूठ शोक में त्रटित श्रुत्र खु ते खना पद से 'सुसाया'! अर्थात खुमाण के वंशज से ऋशिप्राय हे । यह प्रचलित शीति है, चारण ले।ग मेवाड़ व महाराणाश्रों का 'खुमाणशा' अर्थात्‌ खुंमाण के गात्रज' कह कर संबोधन करते हैं । ( २ ) तत्कुटकेमटमरालः कार प्रय्धिसंडलीकानां | चद्रवतीपुरीशः समजनि वीराग्रणीधंचः ॥ £ ॥ श्री भीग देवस्थ नपस्य सेवासल्टम्याँ | )सानः कि म नरेशराषाच् तता मनस्वी धरारायिपं भोजनपं प्रपर \ ६ ॥ प्राग्वाटवंशाभैरणं पैभूय ग्लग्रधानं विमन्टाभिधानः।...॥ ७॥ 1: 1 ५ শি




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