एक प्रतिरावण का जन्म | Ek Pratiravan Ka Janm

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Book Image : एक प्रतिरावण का जन्म  - Ek Pratiravan Ka Janm

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

डॉ रणजीत - Dr Ranjeet

परिचय

जन्म : 20 अगस्त 1937

जन्म स्थान : ग्राम कटार, जिला भीलवाड़ा, राजस्थान, भारत

भाषा : हिंदी

विधाएँ : कविता, कहानी, आलोचना

प्रकाशन : दस काव्य संकलनों सहित कुल मिलाकर तीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित, जिनमे प्रमुख हैं --प्रतिनिधि कविताएं और प्रगति शील कविता के मील पत्थर तथा आज़ादी के परवाने (भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की हुतात्माओं की जीवनियां)। सामाजिक सरोकारों पर सम्पादित त्रयी : धर्म और बर्बरता ,साम्प्रदायिकता का ज़हर और जाति का जंजाल। जाने माने निरीश्वरवादियों के जीवन संघर्ष पर : भारत के प्रख्यात नास्तिक और विश्व के विख्यात नास्तिक।

मुख्य कृतियाँ -

कविता संग्रह : ये सपने : ये प्रेत, अभि

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक प्रतिरावण का जन्म रावण के अत्याधारों से पीडित ऋषि-मुनियों, वानर-भाजुओ ओर गिरि- जनो-वूरजनो को खुशी का प्रारावार न रहा, जब उन्होने सुना वि रावण बे वध केः लिए स्वय विष्णु भगवात ने *राम के रूप में अवदार लिया है। देवताओ ने फूल बरमाये, प्रजाजनो ने खुशियां मनाई । धीरे-धीरे राम बडे होने लगे। शास्त्रों और शस्त्रो में निपुणता प्राप्त करने लगे ।गुए विश्शामित्र थी देश-रेख में वे दुष्ट राध्षमो से यशों गी रक्षा करने लगे। इस बीच राजा छनक ने स्वपवर आयोजित जिया धोर अपने अतुल बाटुदल से शिव का विशाल पुराता घनुप तोदश् कर राम ने सीना से विवाह विया । एक के बाद एव घटना देविक योजना के अनुमाए घटती चलो रपी--भपरा ने बंदयी को प्रेरित किया, बं बेदी ने राम रा वतवास माँगा, दशरएद ने अपना वचन पूरा किया और राम के वियोग में दिवंगत हो गये।॥ राम, सोठा और सदमण वन बी बले | अपने विताश के लिए नियतिदद् शाइद साइ का জয় খালে কত, মীশা ধা अपहरण कर, उमे रझुपनी अशोश्वाटिरा मे से गया 4 रादण के दिनाश की स्पितियाँ एरिएशव होने संयी ॥ रास ने घतशासों दनद और भालुओ शो, रादध बे अत्याबारों से पोडित झाडिश्मो শু অলী को मेता सपदित को और शइघ जो राश्पाती, सोने वो सका, पर एक निर्धारक आजमध की तेयारियाँ करने लगे। उनके दृशलन छर (दिरदम्न भक्त अन्य भववों को अ€-८२ज को दोश्य देते लगे 1 जरोने सार को रः सगी, शिविर सगने सगे 1 रास के सेताताइशों शे निए बाशम देरार हीरे सगे, पूरो.. «7 बस यरी। राम को सेता भरिदत दो, एत्दरों शवौर




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