श्रीमद राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ | Shrimad Rajendra Suri Smarak Granth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47 MB
कुल पष्ठ :
974
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भी राजेन्द्रसूरि-वचनास्टत । ९
তই
दुनियां से कूच कर जाना पदता ই। ই্জা जान कर जो धमैसाग को अपना छेता है, वह
परभव में भी सुख प्राप्त कर छेता है ।
१७ घन, साछ, कुट्ुुस्थ-परिवारादि सव नाशवान और निजगुणघातक हैं । इन
में रद्द कर जो प्राणी बड़ी सावधानी से अपने जीषन को धर्मझत्यों हरा सफछ बना छेता
है, उसीका भवसागर से बेड़ा पार दो जाता ই। शेष आणी चौराशी छाख योनियों के
चक्कर में पड़कर, इधर-उधर भ्रमण करते रहते हैँ | अतएवं शरीर जब तक सशक्त है और
कोई बाधा उपस्थित नहीं है, तमी तक जआत्मकल्याण की साधना कर लेना चाहिये ।
सशक्ति के पंजे में घिर जाने के बाद कुछ नहीं हो सकेगा, फिर तो यहां से कूच करने
का डका वजे छगेगा और असद्दाय हो कर जाना पड़ेगा।
१८ मानवता में चार चांद रुगानेवाला एक विनय गुण है। मनुष्य चाहे जितना
विद्यव् हो, वैज्ञानिक ओर नीतिज्ञ हो; परन्तु जब तक उसमें विनयगुण नहीं होता तब
तक बह सव फा प्रिय ओर जादरणीय नहीं वन सकता । विनयद्वीन मानव उदारता,
धीरता, प्रेम, दया और आचार व विवेकपूर्वक सुन्दर गुणों को नहीं पा सकता। इसी कारण
वह विनयहीन अपनी कार्यसाधना में हृताश ही रहता है। किसी भी कार्य में सफ-
ठता नदीं पा सकता । गायन करने के समय, च्य करने के समय, अभ्यास करने के समय,
चचौवाद करने के समय, संग्राम करने के समय, दुश्मन का दमन करने के समय, भोजन
करने के समय ओौर ज्यवद्ार सस्वन्ध जोड्ने के समय, इन आर स्थानों पर विनय
( ज्जा) रखने से हानि द्ोती हैं । अतः इन स्थानों को छोड़ कर अन्य स्थानों पर
विनयगुण को अपनानेयबाला व्यक्ति सर्वेत्र आदर और प्रेम सम्पादून कर सकता है ।
१९ जिस प्रकार मत्तिकानिर्मितत कोठी को-ज्यॉ-ज्यों धोई जाय त्यॉ-त्यों उसमें
गारा के सिवाय सारभूत वस्तु इछ नदीं मिर सकती, उसी भकार जिस मानव में जन्म
से दी संस्कार अपना घर कर बेठे हैं उसको चाद्दे अकाट्य युक्तियों के द्वारा समझाया
जाय; परन्तु वह सुसंस्कारी कभी नहीं हो सकता । अगर वह विशेषज्ञ होगा तो अधिक
बात से अपने कुसंस्कारों को द॒ृढ़ें करने छगेगा | इसीसे कद्दा जाता है कि ^ पड्या लक्षण
मिटे न सूओं ! অহ किंवदन्ति सोछ॒द জানা सत्य है । कुसंस्कारी सातव समय आने पर
अपनी मलिनताओं को उगले विना नहीं रदत, ज्यों-ज्योँ उसको समझाओ स्यो-त्यौ बह
अधिक मछिनता का शिकार बनता जाता हैँ | जिस मानव में जल्मसिद्ध सुसंस्कार पढ़े
हुए हैं वह दुजनों के सध्य में छाख विपत्तियों में घिर जाने पर भी अपनी अच्छी
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