कलम - पेवंद | Kalam - Pevand
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वनस्पति-जीवन ] १७
कहाता है । जडो प्र पत्ते नहीं निकलते और न कलियाँ
ही पेदा होती है । जडका बढने वाला सबसे आगेका लिरा
अग्रतेप जेसे आवरणसे ढका रहता है जिसे 'मूल-कोप!
कहते हैं । जडके अग्रभाग पर रोयें होते हैं ।
ह्वि-बीजपन्नक पौधेमें एक सुख्य जड होती हे जो
ज़मीनमें अधिक गहराई तक प्रवेश करती है । यह बढकर
मजबूत हो जाती है। इसको 'मूसला जड़! कहते है ।
यह बहुधा मोदी और मांसल होती है । इस परसे शाखा-
प्रशाखायं निकल कर ज्ञमीनमे चारो ओर फेल जातो है 1
एक-बीज पत्रक पौधोंमें प्रारम्भिक मूल ज्यादा लम्बी नहीं
बढती ओर न ज़्यादा मोदी ही होती है। इसके पास ही कई
समान जडे' निकल आती है जो “मांखरा जड़ें! कहलाती
है । मका, ज्वार, बड, गदा आदि ङु पौरधोके वायवीय
च्ंगोसे भी जडे निकलतौ ई । इनको वायवीय सूल
कहते हैं। आर्चिड जातिके पोधे, वृत्तकी शाखा पर उग
आते है ओर उनकी जड़े' हवामें लटकती रहती है. या शाखाओं
पर फेल जाती हैं। ये उपरिजात-मूल कहलाते है । यह
जड हवामे से जल-वायु अरहण करती हैं। कुछ पौधे ऐसे
भी होते हैं जो अपनी जडोंको दूसरे पौधोंकी देहमे
भेज देते है ओर उसीमें से अपने जीवन-निर्वाहके लिये
भोजन सामग्री पाते है। इन जड़ोंको परोपजीबी मूल
कहते है ।
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