कलम - पेवंद | Kalam - Pevand

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Kalam - Pevand by शंकर राव जोशी - Shankar Rav Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वनस्पति-जीवन ] १७ कहाता है । जडो प्र पत्ते नहीं निकलते और न कलियाँ ही पेदा होती है । जडका बढने वाला सबसे आगेका लिरा अग्रतेप जेसे आवरणसे ढका रहता है जिसे 'मूल-कोप! कहते हैं । जडके अग्रभाग पर रोयें होते हैं । ह्वि-बीजपन्नक पौधेमें एक सुख्य जड होती हे जो ज़मीनमें अधिक गहराई तक प्रवेश करती है । यह बढकर मजबूत हो जाती है। इसको 'मूसला जड़! कहते है । यह बहुधा मोदी और मांसल होती है । इस परसे शाखा- प्रशाखायं निकल कर ज्ञमीनमे चारो ओर फेल जातो है 1 एक-बीज पत्रक पौधोंमें प्रारम्भिक मूल ज्यादा लम्बी नहीं बढती ओर न ज़्यादा मोदी ही होती है। इसके पास ही कई समान जडे' निकल आती है जो “मांखरा जड़ें! कहलाती है । मका, ज्वार, बड, गदा आदि ङु पौरधोके वायवीय च्ंगोसे भी जडे निकलतौ ई । इनको वायवीय सूल कहते हैं। आर्चिड जातिके पोधे, वृत्तकी शाखा पर उग आते है ओर उनकी जड़े' हवामें लटकती रहती है. या शाखाओं पर फेल जाती हैं। ये उपरिजात-मूल कहलाते है । यह जड हवामे से जल-वायु अरहण करती हैं। कुछ पौधे ऐसे भी होते हैं जो अपनी जडोंको दूसरे पौधोंकी देहमे भेज देते है ओर उसीमें से अपने जीवन-निर्वाहके लिये भोजन सामग्री पाते है। इन जड़ोंको परोपजीबी मूल कहते है ।




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