हिंदी उपन्यास के चरित्र में अजनबी की भावना | Hindi Upanyash Ke Charitra Mein Ajanbipan Ki Bhawana

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Hindi Upanyash Ke Charitra Mein Ajanbipan Ki Bhawana by विद्याशंकर राय -Vidyashankar Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१०) गवं छटिति करा का नैतिक प्रभाव री षफ তম লিপ में वष्ठ कहता है कि जप प्रका কতা ध्वं पिवज्ञान वै उन्नति की ह+ एमा मस्तिष्की उत्ती आपात मैं मित ष्टौ गये 1६ -मौ का खिचार था कि पम्यता का बदृता दबाव मनुष्य कौ उपनै पष्ट्ज नैमगिकि स्वभाव वै दुर्‌ टाका उफ पामाजिकं प्य चाचरणा अर्‌ प्राकृतिक स्वाभाविक व्यवहार मैं दरार उत्पन्भ करता है । एष तरह प्रभ्य प्रमाज का तत्र मनुष्व की जधिमिता कौ सित खर ककत कर मनुष्य कतै हप्र दुनिया मैं उजनबी অনা दैता है । इर क्वार्पारा का गला चरण फर यह (१८५६१६३७) की “ पविलाईजेधन হল হছে डिप्काटैन्ट्स + चना यै व्यक्त यौन का न्द्रत मनौवैज्ञानिक টিপা? লী सत तम्यता+ লালা अक पम्पा तौए नैतिकत সি दबाव টা লগা ্লিশ্যাশ ( लिबिा ) के दमन हे फलस्वरूप व्यक्ति उपो कमै जिक आवदशशाँ व मत्याँ सै कटा शमा জা বজলঙ্জী पाता रै । स्तैफाम मौराण्स्की ने उक जगद संकेत पहले जमन दान की पूरी परम्परा आछगाव की पमस्या' खड़ी শ্শি পতি আলী है 1४० हष पंवमं में उन्होंते 'विकेशमान, काट, रिलर, हाइनैराइस बाद कै नाम गिनाये हैं क्‍जन्होंते सम्पन्म बोर पुप्त॑गत व्यत्कित्व को प्मप्तामायक्त जीवत विधारों ने नवीन दुष्ट पास्ता बोला, सन्य पषाण কাজি আহত ধা শনজাদ উজান से ति ध मि मेमितः वोन मिहि सोक सित पेते सिः आदे नवि सनतत मेने दे नेतोः चि सिरः स सतिः सनितः कोको तिः जतः भरः सण রি এন বত রাড ৮৬০ माकं आः सैत्स के साँन्यंशास्तरीय विववार^ - स्तक मौतस्स्की च पौ ध्ज्म रण्ड रछिस्णेडन




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