ईशावास्योपनिषद | Iishaavaasyopanishhada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दः ईशावास्योपनिषद्‌ कों संद्रह नदी) परन्तु ब्रह देवयोनि फेवज्न विषयभोगों के लिये दी होती दे, भात्मज्ञान को प्राप्ति के लियि नहीं होती दहै, इसी वास्त देवता भी सव मदान्‌ भोगी होते हैं, श्रात्मज्ञान से शुन्य द्वांते हैं, अनेक कुकर्मा फा करते हें और अपने शरीर से गिरकर फिर छोटी योनियों में जात ६ | दसी से देवयोनि को भी असुरयोनि कदा हे ॥ ३ ॥ नोट--इस मंत्र का उपदेश सकामऊर्मियों फी निन्‍दा के प्रति हैं । मूलम्‌ । अनेजदेकम्मनसो जवीयो नेतदेवा आप्नुवन्पृव- मशेत्‌ | तडावतोन्यानत्येति तिछत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दुधाति ॥ ४ ॥ ॥ ) पदच्छद: | श्रनेजत्‌ , एकम्‌) मनसः) ज्रयः) न; एतत्‌) देवाः, श्याप्रवन्‌, पुवेम्‌ भशत्‌ तत्‌ , धाव्रतः) श्न्यान्‌ , सत्येति, तिष्टत तस्मिन्‌) अपः, मातारेरवा, द्राति ॥ त्क 9 अन्वयः । पदार्थ । | अन्वयः | पदा्थ । पतत्‌=यह भरार्मा नन अमनेजत्‌-भवल ह आप्नुवन-प्राप्त दोते हैं तिछत्‌रविकाररहित है तत्‌ूल्‍वहीं झाय्मा ম-ক্সই चावतः-शाघ्र चनते हुए न न्‌= भारा को श्रथति ति + न | मन श्ादिकोको जवीयःनमाग जानेवाला ह | जकन करता हैं पूयेम्‌-पहले सही | झत्येतिर 1 ्रथःत्‌ पीछे জীব अशेसू>गय।! हुआ ই देता + यत्‌+जिसका + चोर ইস सक्षरादि इस्दिया- तस्िमिन>उसी चेतन आर्मा में ` | भिसानी देवता भी मातरिश्वान्सूत्रास्मा प्राणवायु




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