मदन पराजय | Parvachansar

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Parvachansar by राजकुमार जैन - Rajkumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्पादकीयम्‌ सात-आठ वर्ष पहले की बात है | दिगम्बर जैन समाज में “न्यायकुमुदचन्द्र” जैसे दार्दीनिक ग्रन्थ आधुनिक एवं नवीनतम सम्पादन-शैंी से सुसम्पादित होकर प्रकाश में आये । जैन समाचार-पत्नों में इन अन्थों का बड़ी घूम-धाम के साथ विज्ञापन हुआ और विद्वन्मण्डली में इनको प्रशंसात्मक आलोचना भी। उन दिलों मैं साहित्याचार्य होने की तैयारी कर रहा था और साहित्य-छजन की ओर तो मेरी बहुत पहले से प्रवृत्ति थी | अतः जब न्यायकुमुदचन्द्र प्रभ्ृति सुप्तम्पादित अन्थ मेरे देखने में आये और इनकी प्रशंसा-चर्चो भी सुनने और पढ़ने को मिली तो मेरे मन में आया कि जैन-साहित्य के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ भी क्‍यों न इस प्रकार सुसम्पादित होकर प्रकाश मँ आवें ए संयोग की बात है कि जुलाई सन्‌ १९४४ में मुझे भारतोय ज्ञानपीठ, काशी में काम करने का सोमाग्य मिला | और अपने कार्यक्राल में अन्य अन्थों के सम्पादन-ऊार्य के साथ ही मैंने मदनपराजय के सम्पादन का कार्य भी प्ररम्भ कर दिया । इस प्रकार मदनपराजय का सम्पादन तथा प्रस्तावना के कुछ अंश का लेखन ज्ञानपीठ में रह कर हो सम्पन्न किया गया । अनन्तर परिस्थिति वश मैं यहाँ आ गया ओर दोष कायं यही रहकर पूर्ण किया । मदनपराजय अपने सम्पादित रूप में पाठकों के कर-कमलों में है | पश्चतन्त्र जैसो आख्यान- शेढी मे किला गया यह सर्वप्रथम “1०2०४०४। रूपात्मक अन्थ है । अथवा अपने मौलिक रूप में यह पहली बार ही प्रकाशित हो रहा है । प्रस्तुत अन्थगत विशेषताओं के सम्बन्ध मेँ मैने प्रस्तावना के 'मदनपराजपय एक अध्ययन! शीर्षक अध्याय में यथासम्भव प्रकाश डाला है। इसके साथ ही भारतोय आस्यान-साहित्य के क्रमिक विकास का भी कुछ लेखा लगाया है तथा उपलब्ध रूपकात्मक रचनाओं पर भी एक विहंगम दृष्टि डाली है। मदनपराजय की साहित्यिक धारा के कतिपय शब्दचित्र भी आलेखित किये है । इस तरह प्रस्तावना काफी रुम्बायमान हो गद है । परन्तु आशा है, पाठकों के लिए इसमें कुछ विचार और ज्ञान की सामग्री मिलेगी । अन्त में हम भारतीय ज्ञानपीठ काशी के जन्मदाता और संचालक श्रीमान्‌ साहु शान्तिप्रसाद जी जैन रईस के प्रति अपनी हादिक कृतशताज्ललि प्रकट करना चाहते हैं, जिनके सोद सौजन्य के कारण हमें ज्ञानपीठ में कार्य करने का सुअवसर मिला ओर आधुनिक शैली से ग्रन्थन्सग्पादन की दिशा में प्रवृत होने का सौमाम्य भी । इस अवसर पर हम उन सज्जनों का भी कृतज्ञतापूर्वक नामस्मरण ध्करना चाहते हैं जिनके द्वारा हमें प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन में विविधमुख सहायता प्राप्त हुईं | इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम श्री प॑०




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