सिन्धु सभ्यता | Sindhu Sabhyataa

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Sindhu Sabhyataa by डॉ. किरण कुमार थपल्याल - Dr. Kiran Kumar Thapalayalसंकटा प्रसाद - Sankata Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 : सिंधु सभ्यता अलीमुराद- अलीमुराद सिंध में दादू से लगभग 32 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह तीन से पांच फुट मोटी लापरवाही से तराशे पाषाण खंडों से निर्मित प्राचीर से रक्षित छोटा सा लगभग वर्गाकार क्षेत्र है जो 76 मीटर लम्बा और इतना ही चौड़ा है। इस दीवार के अन्दर और बाहर इमारतों के अवशेष हैं। एक कुआं भी मिला है। मण्मूर्ति, चर्ट-फलक तथा सेलखड़ी, कार्निलियन आदि के मनके मिले हैं। यह एक ग्रामीण स्थल था। मोहेंजोदड़ो- यह सिंधु नदी के पूर्वी किनारे पर है और सिंधु के मुख्य प्रवाह तथा पश्चिमी धारा के मध्य ऐसे क्षेत्र में है जो यदाकदा बाढ़ से क्षतिग्रस्त होता रहा है और आज भी होता रहता है। यह दक्षिण में लगभग 6 मीटर ऊँचा है और उत्तर में लगभग 12 मीटर। मोहेंजोदड़ों का अर्थ सिंधी भाषा में “मृतकों का टीला” है। यद्यपि यह एक प्राचीन स्थल के रूप में कुछ समय पहले से ही ज्ञात था, तथापि इसके पुरेतिहासिक स्वरूप का प्रथम परिचय दिलाने का श्रेय सन्‌ 1922 में राखालदास बनर्जी को मिला। यह उत्खनित सिंधु नगरों में से सबसे महत्त्वपूर्ण और सम्पन्न नगर है। राखालदास बनर्जी इस ध्वस्त नगर कं शीषं पर वने कुषाण-कालीन स्तूप का उत्खनन करा रहे थे तो उन्हें स्तृप के नीचे कुछ विशिष्ट प्रकार की मुद्राएं और अन्य सामग्री प्राप्त हुई। चूँकि इस तरह की वस्तुएं हड़प्पा में पहले ही मिल चुकी थीं और एक वर्ष पूर्व 1921 में वहाँ पर प्रारंभ किये गये उत्खनन से वस्तुओं का पुरैतिहासिक काल का होना सिद्ध हो चुका था, अतः बनर्जी ने तुरंत ही यह निष्कर्ष निकाल लिया कि मोहेंजोदड़ों में भी पुरैतिहासिक अवशेष छुपे पड़े हैं। सिंधु सभ्यता के इस महत्त्वपूर्ण नगर के सांस्कृतिक कोष का उद्घाटन करने के लिए मार्शल के नेतृत्व में 1922 से 1930 तक खुदाई कराई गई। जिन पुराविदों के निरीक्षण में उत्खनन कार्य सम्पन्न हुआ उनमें राखलदास बनर्जी, मकाइ, काशीनाथ दीक्षित, हारग्रीव्म, दयाराम साहनी और माधोसरूप वत्स के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं, यहाँ नगर निर्माण के कम से कम नौ चरण मिले। नगर-निर्माण योजना, भवन, मृद्भाण्ड, मुहरें तथा अन्य कलाकृतियाँ सभी अत्यन्त विकसित सभ्यता की सूचक थीं। कुछ साल बाद मकाइ के नेतृत्व में इस स्थल पर फिर खुदाई हुई। फिर सर मार्टिमर व्हीलर ने, मुख्य रूप से इस बात का पता लगाने के लिए कि मोहेंजोदड़ों के जलमग्न स्तरों में किस तरह की सामग्री छिपी पड़ी है, 1950 में यहाँ पर सीमित उत्खनन कराया। व्हीलर ने जल-तल के नीचे भी लगभग तीन मीटर खुदाई कराई, किन्तु अप्रयुक्ता धरती तक वे भी नहीं पहुंच सके। 1964 और 1966 में अमेरिका के पुराविद्‌ डेल्स ने अप्रयुक्ता धरती तक पहुँचने के उद्देश्य से मोहेंजोदड़ो में उत्वनन कराया। खोदी हुई खाई में बार-बार जल एकत्र हो जाने से उत्खनन कार्य में बाधा




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