श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण [लंका-काण्ड और उत्तरकाण्ड] | Shrimad Valmikiya Ramayana [Lanka-Kanda Aur Uttarakanda]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लैटइंगकाण्ड | ६१५ श्मनेक तरह के यन्त उस नगरी को सुशोभित करते - 'हैं। है रामचन्द्र, पूर्व द्वार में दस हज़ार राक्षस शूल भर तलवाराँ से युद्ध करनेवाले हैं जे। सदा , तैयार रहते हैं । दक्षिण द्वार पर एक लाख राक्तस चतुरंगियी सेना सहित कमर कसे खड़े रहते हैं । दस लाख राक्षस पश्चिम द्वार पर तैनात रहते हैं। ये तलत्रार, हाले भैर प्रनेक शो के युद्ध मे कशल हैँ | दस करोड़ उत्तर द्वार पर तैयार रहते हैं | उनमें श्रनेक ते रथी, वहत से घुडसवार ग्रौर कितने ही कुलीनों के पुत्र हैं। सैकड़ों और सहस्रों छावनी मे रहते ई 1 ये बड़े विकट रहं । करोड़ से प्रधिक राक्तसों की सेना उनके साथ रहती है । हे प्रमो ! उसमें मने उन संक्रमों के! तेड़ डाला ओर खाइयों को भर दिया। नगरी की भस्म करडाज्षा तथा समे।चों ` को ध्वस्त कर दिया। अ्रव किसी प्रकार से इस . समुद्र को पार करता चाहिए; भार जहाँ यह पार हुआ तहाँ बानरों ने लट्ठात को श्रवश्य ही जीता। भ्रड्टद, द्विविद, मैन्द, जाम्बवान, पतस, नल ओर सेनापति नील, बस इतने ही वहाँ के लिए बहुत हैं। भ्रधिक सेना लेकर आप क्या करेंगे ? ये सब कूद कर उस पार जा पहुँचेंगे और पर्व॑तों, बनों, खादयो, तारणो, प्राकारं श्रीर वर्ना वाजी उस लङ्का क বাক फोड्क्रर सीता को ला देंगे। इस प्रकार की श्राज्ञा दीजिए जिसमें सब सेना इकट्ठी है। जाय और उत्तम मुहूर्त में प्रधान किया जाय | चोथा सगं । रामचन्द्र का सेनासहित यात्रा करके समुद्र के किनारे पहुँचना। - महातेजली तथा पराक्रमी रामचन्द्र हनुमान्‌ की बातों को क्रमपूर्वक सुन कर बले -हे कपे ! ठुमने उस भयङ्कर राक्तस कौ जिस लङा का बैन किया उसका में जल्दी नाश करूँगा-। यह मैं सत्य ही कहता हूँ। दे सुप्रीव | इसी मुद्दत्त में यात्रा करो, क्योंकि सूर्य मध्य आकाश में भ्रागया इस- लिए यह विजय का मुहूर्त है। इस विजय-मुहूर्व में सीता का उससे छीन कर लाऊँगा। वह राक्षस जा कहाँ सकता है ? सीता जब मेरा आना सुनेगी तब उसकी अपने जीवन की वैसी ही झाशा होगी जैसी कि जीवन से निराश हुए किसी मरणासन्न पुरुष का अमृत पा जाने से होती है। आज उत्तरों- फास्गुनी नक्षत्र है, फल हस्त से. इसका संयोग देगा । इसलिए हे सुमोव ! चलो, हम सब सेना को लेकर यात्रा करें । इस समय अच्छे श्रच्छे शकुन भी हो रहे हैं, जिससे प्रकट है कि हम सब रावण को मार कर जानकी को ले श्रावेंगे । देखे, सेरी दहनी - आँख फड्क रदी है | यद शक्न विजयसूचक ई । रामचन्द्रजी ने फिर कहा--देखे, मार्ग को देखने के लिए सव से भ्रागे नील चलें श्रौर इनके साथ एक लांख बानर जाये । फिर नील से कहा कि है सेनापति नील ) वन के जिन रास्तों में फल» मूत्र हैं, शीतल जल भरे हुए हैं श्र जहाँ मधु है उन रास्तों में हकर तुम सेना का ले चत्त । देखे, बै दुतम राक्तसगण सार्ग॑के मूल, फल. श्रीर जल्ल को दूषित अर्थात्‌ विषयुक्त न कर दें | उनसे :




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