शरीर क्रिया विज्ञान | Sharir Kriya Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न अभिनव शरीर-क्रिया-विज्ञान से न होकर धन्य यन्य्रों के सहयोग के आधार पर ही होते हैं । ऐसे समान क्रिया ' चाले सहयोगी भर्गों के समूह को 'तम्त्र' या. प्सशष्यान' ( डिएुड6ए0 ) कहें हूं, चारीर में विभिन्न कार्यों के सम्पादन के लिए निम्नलिखित तम्न्न दंद (9 9 पाचनतन्त्र ( 12०5९ 5 )7--इसका काय जाहार का पाचन करना है । ( २ ) धसनतस्त्र ( फिलउुकएएण हरा, सा )-इसका काय बायु से जॉक्सिजन ग्रहण करना तथा कार्चनडाइजॉक्साइड को चादर मिंफ्राउना है 1 (३) रक्तसंबदनतब्र ( एमीएट्णा8णल हु हा )-इसका कार्य पोपक पदार्थ को दारीर के घातुर्भो तक पहुँचाना हैं । ( ४ ५ मलोस्तर्गतन्त्र ._. ( फिदट/0एक 8पुलाछएण )-- इसका. कार्य दारीर की प्राकृत क्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न मां की शरीर से बाहर निकालना हैं 1 (५ ये प्शीतन्त्र ( 250पौदा' अरब ):-नरभगों में गति उत्पन्न करना इसका कार्य है । (६ ) नस्गिसंस्थान ( जिला इप्र860५ क--यहं शरीर को रिधर करता हि तथा शरीर के सुकोमल अवयदों की रक्त: करता द । ( ७ ) नाढ़ीतन्त्र [ ऐपेंढार०प5 छुपा; 810 ).-यदद अन्य सन्त्रों की क्रियाओं का सचाठन, नियम्श्नग एवं नियमन करता है। जे ग्रन्िसंस्यान ( ाध्फतेशादा 3रणा यह विभिन्न स्राव के द्वारा धारीर की क्रिया में सहायता पहुंचाता है । कोपाणु की रचना चस्तुतः जीवकोपाएु जोजःसार का 'केन्द्रकयुक्त समूह” है । इसकी रचना जतीव सूदम होती दे और सुदमदर्सक यन्त्र से ही देखी जा सकती है । सलुप्य- दारीर में इसका व्यास इच्छेट से इडेल द्च तक होता दे । इसमें निम्नलिखित अवयच होते हूँ :-- € १) ओोजन्लार ( टिएणं0फ 83 )-यह कोपाएु का मुख्य भाग होता है, जो समूचे कोपाशु में भरा रहता है । ( २ केन्द्रक ( परेपटॉलए5 )--यह कोपाशु के केन्द्र में पाया जाता है । ! क




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