शरीर क्रिया विज्ञान | Sharir Kriya Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.58 MB
कुल पष्ठ :
653
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न अभिनव शरीर-क्रिया-विज्ञान
से न होकर धन्य यन्य्रों के सहयोग के आधार पर ही होते हैं । ऐसे समान क्रिया
' चाले सहयोगी भर्गों के समूह को 'तम्त्र' या. प्सशष्यान' ( डिएुड6ए0 ) कहें
हूं, चारीर में विभिन्न कार्यों के सम्पादन के लिए निम्नलिखित तम्न्न दंद
(9 9 पाचनतन्त्र ( 12०5९ 5 )7--इसका काय जाहार का
पाचन करना है ।
( २ ) धसनतस्त्र ( फिलउुकएएण हरा, सा )-इसका काय बायु
से जॉक्सिजन ग्रहण करना तथा कार्चनडाइजॉक्साइड को चादर मिंफ्राउना है 1
(३) रक्तसंबदनतब्र ( एमीएट्णा8णल हु हा )-इसका कार्य
पोपक पदार्थ को दारीर के घातुर्भो तक पहुँचाना हैं ।
( ४ ५ मलोस्तर्गतन्त्र ._. ( फिदट/0एक 8पुलाछएण )-- इसका. कार्य
दारीर की प्राकृत क्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न मां की शरीर से बाहर
निकालना हैं 1
(५ ये प्शीतन्त्र ( 250पौदा' अरब ):-नरभगों में गति उत्पन्न
करना इसका कार्य है ।
(६ ) नस्गिसंस्थान ( जिला इप्र860५ क--यहं शरीर को रिधर
करता हि तथा शरीर के सुकोमल अवयदों की रक्त: करता द ।
( ७ ) नाढ़ीतन्त्र [ ऐपेंढार०प5 छुपा; 810 ).-यदद अन्य सन्त्रों की
क्रियाओं का सचाठन, नियम्श्नग एवं नियमन करता है।
जे ग्रन्िसंस्यान ( ाध्फतेशादा 3रणा यह विभिन्न स्राव
के द्वारा धारीर की क्रिया में सहायता पहुंचाता है ।
कोपाणु की रचना
चस्तुतः जीवकोपाएु जोजःसार का 'केन्द्रकयुक्त समूह” है । इसकी रचना
जतीव सूदम होती दे और सुदमदर्सक यन्त्र से ही देखी जा सकती है । सलुप्य-
दारीर में इसका व्यास इच्छेट से इडेल द्च तक होता दे । इसमें निम्नलिखित
अवयच होते हूँ :--
€ १) ओोजन्लार ( टिएणं0फ 83 )-यह कोपाएु का
मुख्य भाग
होता है, जो समूचे कोपाशु में भरा रहता है ।
( २ केन्द्रक ( परेपटॉलए5 )--यह कोपाशु के केन्द्र में पाया जाता है ।
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