द्विवेदी पत्रावली | Duvedi Patrawali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बैजनाथ सिंह 'विनोद' - Baijanath Singh 'Vinod'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्विवेदी-पन्नावल्ी ` ` १९.
'गाँवसे रायबरेली बहुत दूर था । इसलिए वह उन्नाव ज़िलेके रनजीत-
'युरवा स्कूलमें मर्ती किये गये । पर वह स्कूल शीघ्र ही टूट गया । इसके
बाद फतहपुर भेजे गये। पर वह डबल प्रोमोशन चाहते थे और डबल
प्रोमोशन वहाँ मिला नहीं, इस कारण उन्नाव चले गये । किन्तुये समी
स्थान उनके गविसे दूर थे। इस कारण उनके पिताने उन्हें अपने पास
'बुलानेका निश्चय किया ।
अपनी स्कूली शिक्षाका अनुभत्र स्वयं द्विवेदीजीने इस प्रकार लिखा
है--/“““““बरेलीके ज़िला-स्कूलमें अंग्रेज़ी पढ़ने गया । आटा, दाल
“घरसे पीठपर लादऋर ले जाता था। दो झाने फीस देता था। दाल ही
में आठेके पेड़े या टिकरियाएं पका करके पेट-पूजा करता था । रोटी
बनाना तब सुझे आता ही न था। उंस्कृत भाषा उस समय उस स्कूलमें
. वैसी ही अछुत समझी गई थी, जैसे कि मद्गासके नम्ब॒दरी ब्राह्मणोंमें वहाँ
की शूद्र जाति समझी जाती है। विवश होकर अंग्रेज़ीके साथ फारसी
पढ़ता था। एक वर्ष किसी तरह वहाँ काठ । फिर पुरवा, फतेहपुर और
उन््नावके स्कूलोंमें चार वष काठे। कौठुम्बिक दुरवस्थाके कारण में उससे
आगे न पढ़े सका। मेरी स्कूली शिक्षा वहीं समाप्त हो गई |”? डॉ०
'उदयभानु सिंहजीने अपने निबन्धमें द्विवेदीजीकी इस समयकी एक
घटना लिखी है, जिससे उनकी आर्थिक स्थितिपर भी प्रकाश पड़ता है ।
उन्होंने लिखा है “““““““एक बार तो जाड़ेकी ऋतु॒में सारी रात पैदल
चलकर पाँच बजे सबेरे घर पहुँचे । द्वार बन्द था, माँ चक्की पीस रही .
थी । बालककी पुकार सुनकर सम्माश्रम दौड़ पड़ी |» इस प्रकार.
कठिन परिश्रम और घरवालोंके उद्योगके बावजूद भो घोर गरीबीके कारण
महावीरप्रसाद द्विवेदीकी शिक्षा उचित रूपसे न हो सकी |
अपने पिताके बुलाने पर वह उनके पास बम्बई चले गये | बम्बई
उसी समय श्रौद्योगिक शहर हो गया খা । वहाँ वह विभिन्न माषामाषियोंके
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