प्रबंध पूर्णिमा | Prabandh Purnima

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Prabandh Purnima by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आमुख आशा की जाती है कि यह पुस्तक जिसके हाथ में होगी लसने प्रारम्भिक निबन्ध-लेखन का अभ्यास कर लिया होगा। ह्मे उसे यह नदीं बताना है कि वह निबन्ध किस प्रकार आरम्भ करे, उसे किस तरह आगे बढ़ाये, और अन्त किस प्रकार करे । निबन्धो के भिन्न-भिन्न सेदों ओर उनकी विशेषताओं के सम्बन्ध में भी वह जानता होगा | हमें इस पुस्तक की भूमिका में एक ही प्रकार के निबन्ध पर विचार करना हे--विचारात्मक या विवेच- नात्मक निबन्ध । ऊँची कक्षावाले विद्यार्थियों का सम्बन्ध इसी श्रेणी के निबन्धों से है। विवेचनात्मक निबन्ध का अर्थ हे कि लेखक किसी विषय पर अपना मत प्रक्रट करे ओर उस मतको तकं ओर दृष्टान्तो से पुष्ट करे | यदि विषय ऐसा हो जिस पर मतभेद है या मतभेद हो सकता हे तो लेखक अपना जो मत स्थिर करे उसका विरोधी मत भी दे दे ओर उसकी अपने दृष्टिकोण से आलोचना भी कर दे। जहाँ तक संभव हो विषय को स्पष्ट करने के लिए जो दृष्टान्त दिये जायें वे ऐसे हों जिनसे पाठक परिचित हो | साहित्यिकता का थोड़ा बहुत अंश होना आवश्यक हे, नहीं तो तक ओर विवेचना की नीरसता में पाठक के खो जाने की आशंका है। विवेचनात्मक निबन्ध में आवश्यक बात यही हे कि उसमें किसी भी विषय पर




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