विश्वप्रपंच भाग - 2 | Vishvaprapanch Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११)
से सभ्य देश के करोड़ों मनुष्य इस अंधविश्वास को अपनी:
হল निधि! समझते हैं | इसे वे कदापि छोड़ना नदी चादते ।
पर में इस बात को हृढ्ता के साथ कहता हूँ कि आत्मा के
अमरत्व की भावना सोह के अतिरिक्त और कुछ नदी । इसे
त्यागने से मनुष्य जाति की हानि कुछ न्दी, ओर राभ
बहुत है ।
आत्मा को अमर मानने की अबलू वासना का कारण
क्या है ? क्यों छोगों की यह इच्छा रहती है कि आत्मा अमर
सिद्ध हो ? इसके मुख्य कारण दो हैं--एक तो यह आशा
कि परछोक मे अधिक सुख मिलेगा, दूसरी यह आशा कि
मृत्यु के कारण जिन प्रिय जनों का वियोग हुआ है वे फिर
देखने को मिलेगे । इस संसार मे बहुत सी भराइयाँ हम
दूसरों के साथ करते है जिनके वदङे की काई आशा यहाँ
नहीं होती । अतः हम एक ऐसे अनत जीवन की वाञ्छा
करते हैं. जिसमे सब बदले पूरे हो जाये और सदा सुख
भोर शान्ति वनी रदे । भिन्न भिन्न जातियो में स्वर की
भावना उनकी सुख की भावना के असार है । ससस्मानो के
विदिश्त में सुन्दर छायादार वग्रीचे है, मीठे पानी के चमे,
जारी हैं, हुर और गिरूमा सेवा के लिए हैं | ईसाइयो का
स्वगे भी सुखसंगीतपूर्ण है, अमेरिका के आदिम निवासियों
के गवर्ग में शिकार खेलने के लिए बड़े बड़े मेदान हैं जिनमे.
असंख्य भैंसे और भालू फिरा करते है । ध्यान देने की बात
यह है कि छोग स्वगं मे उन्दी सव सुखो को भोगने की कामना,
करते हैं जिन्हें वे यहाँ ,अपनी इन्द्रियों के द्वारा भोगते हैं । वे
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