स्व - गत | Swa-gat

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Swa-gat by हरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyaya

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्व-गत साग की इस कसट पर करने लगे, तेः शायद “सागमूमि, को अपना जीवन ही छाण देना पढे ১৫ > ९ ५ सस्थाये धन प्र नदीं चलती, निसा सेवा, श्रविचल छगन और अदूट शरद्धा पर चलती हँ \ ১ ५९ ৯ कार्यकत्ती शिकायत करते हैं कि काम नहीं मिलता, कोई काम नहीं देता १ कार्य-संच्चालक उलहना देते हैं, काम करने यलि नहीं निरते \ किष, किसका दु ख साहे १ .“ ১ ১ ১ कागकत्ती यदि सेठा के मतवएंले हे ठे काम उनके लिए ऋदम-कदम पर मौजूद ই । यदि वे सेवा क शक्र पूरा करना বলাই ই ते प्रलयकाल तक उनकी शिकायत का कोई इलाज नहीं हो सकता १ ৮ ५९ ৯৫ शर्ग-सेचालक उन्हींकी सेवा-योग्य समझते हें, जे! उनकी कडी से कडी कसौटी पर से टच के साबित हों। पर उन के लेकिन सद्दे लोगों का क्‍या हो, जो सहृदयता का हाथ श्रत अदने से रमि चलकर परिपक्व छो सक्ते हैं, पर उसके चारु




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