भगवद्गीता का मनोविज्ञान भाग 1 | Bhagvadgeeta Ka Manovigyan Vol. 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.56 MB
कुल पष्ठ :
350
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न जन्म न मृत्यु नहीं है। इसलिए कृष्ण से ज्यादा नान-सीरियस गैर-गंभीर आदमी खोजना मुश्किल है। और जो गंभीर हैं वे खबर देते हैं कि उन्हें जीवन के पूरे राज का अभी पता नहीं चला है। जीवन का पूरा राज यही है कि जिसे हम तलाश रहे हैं उसे हमने खोया है। जिसे हम खोज रहे हैं उसे हमने छिपाया है। जिसकी तरफ हम जा रहे हैं उसकी तरफ से हम खुद आए हैं। पर ऐसा है। और आप पूछें क्यों है ? तो उस क्यों का कोई उत्तर नहीं है। एक क्यों तो जरूर जिंदगी में होगा जिसका कोई उत्तर नहीं होगा। वह क्यों हम कहां जाकर पकड़ते हैं यह दूसरी बात है। लेकिन अल्टिमेट व्हाई आखिरी क्यों का कोई उत्तर नहीं हो सकता है। नहीं हो सकता इसीलिए फिलासफी दर्शनशास्त्र फिजूल के चक्कर में घूम जाता है। वह क्यों की तलाश करता है। इसको थोड़ा समझ लेना उचित है। दर्शनशास्त्र क्यों की तलाश करता है-ऐसा क्यों है? एक कारण मिल जाता है फिर वह पूछता है यह कारण क्यों है ? फिर दूसरा कारण मिल जाता है फिर वह पूछता है यह कारण क्यों है ? फिर इनफिनिट रिग्रेस हो जाता है। फिर अंतहीन है यह सिलसिला । और हर उत्तर नए प्रश्न को जन्म दे जाता है। हम कोई भी कारण खोज लें फिर भी क्यों तो पूछा ही जा सकता है। ऐसा कोई कारण हो सकता है कया जिसके संबंध में सार्थक रूप से क्यों न पूछा जा सके ? नहीं हो सकता। इसलिए दर्शनशास्त्र एक बिलकुल ही अंधी गली है। विज्ञान नहीं पूछता-क्यों ? विज्ञान पूछता है-क्या व्हाट ? इसलिए विज्ञान अंधी गली नहीं है। धर्म भी नहीं पूछता-क्यों ? धर्म भी पूछता है-न्हाट क्या? इसे समझ लेना आप। विज्ञान और धर्म बहुत निकट हैं। विज्ञान की भी दुश्मनी अगर है तो फिलासफी से है। और धर्म की भी अगर दुश्मनी है तो फिलासफी से है। आमतौर से ऐसा खयाल नहीं है। लोग समझते हैं कि धर्म तो खुद ही एक फिलासफी है। धर्म बिलकुल भी फिलासफी नहीं है। धर्म एक विज्ञान है धर्म यह पूछता है
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