उत्तरज्झयणाणि [उत्तराध्ययन सूत्र] [भाग १] | Uttarajjhayanani [The Uttaradhyayana Sutra] [Part 1]

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Uttarajjhayanani [The Uttaradhyayana Sutra] [Part 1] by आचार्य तुलसी - Aacharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूमिका ३ 3$--নঅহচাজিভী २९ चान्न 3२--पमायटाणाड़ ९55 प्रमाद्‌-स्थान ॐ55-कम्मपगढी ३५ कम 3४---लेसज्क्रयण ६९ হু 3५--नभणगारमग्गे =, मक्षु के शुण ३६-- जीवाजीवाविमत्ती 35৫ जोव ओर जननीव का प्रतिपादन इस सूत्र में माषा के विशिष्ट प्रयोग ठपक्ब्य ङ्लोते हैः । इसकी प्रुक भाषा णगर्द्धमागधी प्राक्त है, परन्तु यत्र- तन्न मह्ाराण्ट्री-प्राकत कै प्रयोग भो बक्कता से मिरुते ই | জল ष्ठो ँ*चशित विषय-वस्तु का विजश्ञद विवेचन “देसवेशालिय तत्व ठत्तरत्कयण?” की मूरमिका ( पृष्ठ ९-४६ ) मे किया जा 'चुका छै | व्याकरण, छनन्‍्द, चुकनात्मक, भुगोक्त और व्यक्ति-परिचिय--ड्ननका विमर्ड “ठचराध्ययन रुक समीक्षात्मक भध्ययन? में किया ना चुका हरे | वाव --आचायं तुलसो २६ अप्रैल, १९६७




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