वैष्णव, शैव और अन्य धार्मिक मत | Vishno Siv Or Anye Darmik Mat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चेण्णवर्धर्म ५ विद्यमान भागवत संप्रदाय सथयन्धौ विवर्णो से यष्ट स्पष्ट है कि पूजाई वाषुदेव | दृष्णि-वमी ये । महाभारत के नारायणीय खण्ड का विश्लेषण इस प्रकार अकास्य साक्ष्य के आधार पर ई० पू० तीन-चारशताब्दियों के लगभग णक रेषे ध्म का सस्ति णद्ध दोता १ जे केन्र वासुदेव थे भोर जिसके यतुयायी मागवव क्काते ये 1 अव म साहित्य मँ विदोप सूप से महामारत म्‌ विद्यमान विस्तृत विवरणों की समीक्षा आरम्भ कर्ता हैं) यह লাম इससे पूव नदी किया गया है, मरयोकि महममारत या इसके किसी मी अश की तिथि का निधारण निश्चय केखाय नहीं किया जा सकता । विन्त शात पयं का नारायेणीय-पष्ड, जिस प्र विस्तृत रूप से विचार किया जायणा, अकरा चार्यं से अधिके प्राचीन है, जिन्होंने इससे उद्धरण दिये हैं। नारद यो नर एवं भारायण के दर्शनार्थ वदरिकाश्रम जाते हुए चित्रित किया गया है। नारायण धार्मिक विधियों के सम्पादन में लगे हुए थे। नारद ने नारायण से प्रश्न किया “आप किसकी एज करते हैं, जय कि आप स्वय परमेश्वर हैं?” नारायण ने नारद को बतलाया कि म पनी आदि पति की पजा करता ह, जो सत्‌ एव रत्‌ खी की योनि है । धर्म के पृत्र नर्‌ एव नप्सयण ठथा कृष्ण एव दरि को परमातमा के घार रुप में चित्रित किया गया है । नारद, आया प्रझृति के दर्शनार्थ आकाश पर उड़े तथा मेर पर्वत के द्ध पर उतरे। वहाँ पर उन्होंने इन्द्रियों से विद्ीन, किसी भी वस्तु को न खाने वाले ( अनशना ) पाप रित, छने के समान शिर्स बाले, मेष की गजना के समान निनाद करने वाले तथा भगवान्‌ के भक्त वेत पुर्यो को देखा] युधिष्ठिर মী से प्रश्न बरते हैं कि थे पुँषण कौन थे! ये कैसे उत्नन्न हुए! वे क्‍या थे १ मीप्स राजा उपस्विर फी कथा कहते हैं, जिसने सात्वत-विधि के अनुसार भगवान्‌ फी पूजा की थी। चह इन्द्र द्वरा सम्मानित, यशस्वी, सत्यपरायण एवं पवित्र शजा যা। पाश्चराच्र मत के सर्वश्रेष्ठ दिद्वानों को वह भोजन म अम्र आसन प्रदान करते; सत्कृत करता था। श्सके बाद कथाकार चित्रशिखण्डियोँ का वर्णन करता है, जो इस मत के आंदि प्रकाशक मालठ्म पढते हैं। मे८ पर्वत पर उन्होंने इस मत को प्रकाशित किया। वे मरीचि, अत्रि, अद्धिस्स, पुरुल्य, पुक्‌, कतुः पल वरिष्ठ खात ये 1 जाये स्वायभ्युवये } इन आर्त से यह दिव्य शास्त्र শিকলা। হত্ত হাজ का प्रकाशन उन्होंने परम भगवत्‌ के समक्ष किया। तब भेगवान ने ऋषियों से कह, “झाप लोगों ने आतसहसख उत्तम श्लोकौ की रचना की है जिनमें समस्त लेक षर विद्यमान है, जो यजु , साम, ऋक तथा अ्र्वशिरस्‌ के अनुरूप ই तथा जो ग्रदृत्ति एवं निषृत्ति के विषय में नियमों को निर्धारित करते ६ । मर्या फो सैंने अपनी प्रखर प्रकृति चे रचा तथा रद को कोधमयी प्रकृति से । জন ৮




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